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________________ ( ३२० ) था । मूल मीमांसकों की मान्यता ऐसी ही हो, तो आश्चर्य क्या । बौद्ध दर्शन भी ईश्वर को जगतकर्ता नहीं मानता, परन्तु वह सत् पदार्थों को क्षणभंगुर बताता है--१ संसार में कोई पदार्थ नित्य नहीं है | किन्तु यह मान्यता भी नयवाद की ऋणी है— अन्यथा सर्वथा एकान्तदृष्टि से सब पदार्थों को क्षणिक माना जाय तो एक समय में जो आत्मा है, वह दूसरे समय में नहीं रहेगा -- फिर उसके किये हुये कर्मों का फल कौन भोगेगा ? इसलिये यह बात वनती नहीं है । हाँ, यदि हम ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षा यह कहें कि पदार्थ क्षणिक हैं तो एक हद तक ठीक हैऋजुसूत्र नय समयवर्ती है और यह स्पष्ट है कि पदार्थों में समयवर्ती परिवर्तन होता रहता है, यद्यपि वे अपने मूल स्वभाव में ज्यों के त्यों रहते हैं। शायद म० वृद्ध ने लोगों को संसार से विरक्त करने के लिये पदार्थों की क्षणभंगुरता पर जोर दिया । इस प्रकार पाठक महोदय, भारतीय दर्शनों का सम्बन्ध जिनदर्शन से प्रगट होता है और वह इस बात की दलील है कि उन दर्शनों की वास्तविकता को परखने के लिये भ० महावीर की दार्शनिक मान्यताएं खास महत्व रखती हैं । निनदर्शन नयप्रमाण - युक्त स्वयं परिपूर्ण है - वह वस्तु स्वरूप का ठीक परिज्ञान कराता है। चहुँ ओर से निराश होकर भी यदि जिज्ञासु जिनदर्शन का अध्ययन करे तो उसे परम सन्तोष प्राप्त होना शक्य है । सर्वदर्शनों के अन्वेषक विद्यावारिधि स्व० वैरिस्टर चम्पतरायजी ने यही लिखा है कि 'सत्यान्वेपण मे जब धर्म की ओर पहुँचा जाता है और मान एवं माया को उठाकर ताक में रख दिया जाता है, तब जिज्ञासु देखता है कि जैनधर्म उन सर्व मतों में अनुपम है जो सत्य बताने का दावा करते हैं ।' १. यत् सत् तत् चणिकं - सर्व दर्शन सग्रह प० २० --- ८ (म० शीतलप्रसाद व जैनधर्म प्रकाश से )
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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