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________________ ( २८२ ) तालाब में कमल नहीं खिल रहे थे, परन्तु अनुमान कीजिये जरा, कैसा चित्ताकर्षक श्य तालाव का होता होगा जब श्वेत और रक्तवर्ण के कमलदल उसके समतल को अलंकृत करते हॉग एवं उसकी त्वच्छ तली में मछलियाँ कमल नालों के तंतुओं में किल्लोलें करतीं तैरती दिखाई पड़ती होंगी ! सूर्य भी उस समय उस जल विन्दु को जो मछलियों के किल्लोल-नत्य से कमलदल पर आन पड़ा हो, अति मनोहर गुलाबी रंग के मोती में परिवर्तित करता नजर आता होगा। हमारे भगवान् के पवित्र मंदिर तक पत्थर का पुल बंधा हुआ है। इस मंदिर में एक छोटी कोठरी है, जिसमें पूर्वाभिमुखी तीन ताक हैं । वीच वाले ताक मे भ० महावीर के चरण चिन्ह अङ्कित हैं। इस ताक से इधरउधर की ओर के दूसरे ताकों में क्रमशः गणधर इन्द्रभूति गौतम और सुधर्म स्वामी की चरणपादुकायें प्रतिष्टित हैं। इन पवित्र चरण चिन्हों के दर्शन करने से जिस शान्ति और शुचिता का आनन्द मिलता है वह वचन अगोचर अनुभव की चीज है। अवकास पाने पर सित्रगण पावापुरी की यात्रा कर देखे-वहाँ भगवान के परोक्ष परन्तु साक्षात् चरणों तले वैठने का सौभाग्य प्राप्त करें। उनकी प्रकाशमान उंगलियाँ आज भी सनातन सत्यमार्ग को व्यक्त कर रही हैं और उनकी हितमित वाणी व्यथित यात्री को शान्ति, सुख और सत्य के पावन धाम की ओर पग बढ़ाने को ललचा रही है !" निस्सन्देह सिद्धत्व प्राप्त महावीर की शुद्ध प्रात्म ज्योति का प्रकाश उस पुनीत स्थल पर ही दिपता है-वहाँ से तो सीवे भगवान् महापयान करके निरावरणधाम को पहुँचे थे उनका वह दिव्य मार्ग अव भी नानष्टि के लिये जाज्वल्यमान है। उस पर नैसर्गिक सौन्दर्य अपर्व उल्लास और उत्साह का सष्टा है । भगवान् के सिद्धिपरक चरणों की छाया में बैठना मानों
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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