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________________ ( २८१ ) मछलियों के बिहार से कहीं अधिक कलात्मक होता है । और पावापुरी को छोड़कर दूसरे किस स्थान मे ऐसा दृश्य देखने को मिलने वाला था ? संध्या की शांति का समय था । हम सीधे मंदिर के भीतर पहुँचे । हिंसा का साक्षात्कार करने वाले तपस्वी महावीर का कुछ क्षण के लिये ध्यान करके मैं बाहर निकला और गुंधा हुआ आटा लेकर मनोविनोद के लिए मछलियों को चुगाने द्वीप की सीढ़ियों के पास गया । मछलियों का आकार कलापूर्ण होता ही है। खासकर जब वे झुण्ड मे इकट्ठी होती है और क्रीड़ा करती है अथवा खाने के लिये छीना-झपटी करती हैं, मोड़ों और ऐंठनों का नृत्य एक जीवित काव्य बन जाता है । " निस्सन्देह पावापुर जीवित काव्य है । हिंसानन्दी व्यक्ति भी उसके पवित्र आलोक में अपनी निर्दयता भूल जाता है । क्या वंसी में धोखे से मछली को फंसा लेने में वह कलामय आत्मा को आल्हादकारी नृत्य देखने को मिल सकता है जो जल मंदिर के चबूतरे की कोर पर से मछलियो को आटा चुरं गाते हुए नसीब होता है ? कदापि नहीं ! अहिंसा की दिव्यता और विशेषता बताने के लिए ही मानो वह मत्स्यादि पूर्ण सरोवर वहां शोभित है । स्व० श्री जुगमन्दर लाल जी जैनी जज ने विषय मे लिखा था कि "पावापुरी धार्मिक सम्बन्ध होने के कारण प्यारी है। मुख्यमंदिर जिसमे भ० महावीर के पवित्र चरण चिन्ह विराजमान हैं, कमल पत्रों और अन्य जलज लतावल्लरियों से अलंकृत एक तालाब के मध्य अवस्थित है। पानी के मध्य अनेक मछलियां तैरती नजर आती है और उनका रतिपूर्ण तैरना मनोरंजन का सलौना दृश्य है । कभी २ एक बड़ी मछली छोटी मछलियों के गिरोह पर झपटकर उन्हें तितर बितर करके पानी मे भीतर दौड़ जाने के लिये वाध्य करती है। इस समय इस ܘ
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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