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________________ ( २७६ ) ततश्च लोकः प्रति वर्षमादरा-त्प्रसिद्ध दीपालिकयात्र भारते । ___ समुद्यतः पूजयितु जिनेश्वरं, जिनेन्द्रनिर्वाण विभूति भक्तिभाक् ॥२१॥ इति हरिवंशपुराणः अर्थात्-"उस समय भ० महावीर के निर्वाण कल्याणक के उत्सव के समय सुर-असुरों ने महादैदीप्यमान जहा तहां दीपक जलाये-रोशनी की, जिससे पावानगरी अति सुहावनी जान पड़ने लगी और दीपकों के प्रकाश से समस्त आकाश जगमगा उठा। भगवान के निर्वाण दिन से लेकर आज तक श्री जिनेन्द्र महावीर के निर्वाण कल्याण की भक्ति से प्रेरित हो लोग प्रतिवर्ष भरतक्षेत्र में दिवाली के दिन दीपों की पंक्ति से उनका पूजन स्मरण करते है।" सचमुच दिवाली भ० महावीर की पवित्र स्मृति को प्रतिवर्ष पुनर्जीवित करती है। भ० महावीर के पदार्पण से पावा पवित्र हो गया और तीर्थङ्कर का निर्वाणधाम होने से वह यथार्थतः 'अपापापुरी' वन गया। आज भी असंख्य यात्रीगण निर्वाणमदिर मे भ० महावीर की वीतराग-छवि के समक्ष ध्यान का सहारा लेकर सुखानुभव करते हैं। उस निर्वाणधाम का वातावरण परम शान्ति का आगार है । यात्री एक अलौकिक आनन्द वहाँ पहुँचते ही पाता है । काका कालेलकर ने उस पुण्यभूमि के दर्शन करके लिखा है कि हरे २ खेतों के विस्तार में पावापरी के शुभ्र मंदिर कैसे शोभा देते हैं ? इस जगह एक आर्यहृदय के जीवन-काल का अन्त हुआ था और यहीं से भ० महावीर के गणधर अहिंसा का संदेश लेकर दश दिशाओं में फैल गये थे। जिसने इस स्थान को
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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