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________________ (१६७) में मरी और व्यंतरी हुई। विभंगावधि से उसने मेरे बाबत जान लिया और वह मेरी तपस्या में बाधा डालने के लिये तुल पड़ी। एक महीने का अनशन उपवास करके जब मैं पारणा के लिये गया तो उसने इन्द्रिय वर्द्धन करके उपसर्ग किया-मैं आहार लिये विना ही लौट आया और तपस्या मे लग गया। फिर एक महीने का उपवास किया। उसके अन्त मे जब मैं पारणा को गया तो तुमने आहार दिया-उस समय भी व्यतरी कनकधी ने वही उपसर्ग किया; परन्तु तुमने अपने कौशल से उसे छिपा लिया। मेरा निर्दोष आहार हुआ । उपग्रहन धर्म का तुमने पालन किया और ऐसा सात्विक आहार दिया कि देखो, मैं शुक्ल ध्यान को साधने में सफल होकर सर्वज्ञ हुआ हूँ। महावीर प्रभू के शासनसंघ की तुम अमूल्य रत्न हो ।" मुनि वैशाख की यह वार्ता सुन कर श्रोताओं की धम वृद्धि हुई और वे रानी चेलनी की प्रशंसा करने लगे! मुनि वैशाख विपुलाचल से मुक्त हुए। यह तो एक उदाहरण है। चेलनी के ऐसे पण्यकार्य अनेक थे। अपने पुत्र कुणिक अजात शत्रु को उन्होंने ही धर्म मे दृढ़ किया और जब उनकी बहन ज्येष्ठा आर्यिका चारित्र मोहनीय की शिकार बनी थीं-शीलधर्म से बलात् डिग गई थी, तब उनका स्थितिकरण और उपबहण चलनी ने किया था। काम प्रबल सुभट है-उसे जीवना सुगम नहीं । उस पर ज्येष्ठा से व्याह करने के लिये सात्यकि नप पहले से लालायित थे-वह निराश प्रेमी थे । जब ज्येष्ठा आर्यिका हुई तो वह भी मुनि हो गये। दोनों भ० महावीर की शरण में आकर पवित्रता की मूर्ति बन गये; परन्तु सूक्ष्म राग उनके हृदय के कोने में छिपारहा । सात्यकि मुनि एक दिन गुफा में ध्यान कर रहे थे। बाहर जोर का पानी वर्षा था । ज्येष्ठा आहार से लौटी तो वर्षा में भीग गई। अपनी साड़ी सुखाने के लिये वह उसी अंधी गुफा में अकस्मात् पहुँची,
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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