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________________ ( १७३ ) मत्त हो जाता है, वैसे ही जाति घमंड के मद में भरा हुआ मनुष्य बुद्धिहीन हो जाता है । वह अपने को उच्च और दूसरों को नीच समझ कर उनके साथ बुरा व्यवहार करता है। वह नहीं विचारता कि अपने गुणों से ही मनुष्य उच्च और नीच बनता | 'ब्राह्मण भी मांस भक्षण तथा वेश्यादि सेवन न करने योग्यों का सेवन करने से क्षण भर में पतित हो जाता है । प्रत्यक्ष में मनुष्यों के शरीर में वर्ण वा आकार से कुछ भेद भी दिखाई नहीं पड़ता - त्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों में शूद्रों से भी गर्भाधान की प्रवृत्ति देख पड़ती है; इसलिए मनुष्यों में गाय और घोड़े के समान जाति का किया हुआ कुछ भेद नहीं है । यदि आकृति में कुछ भेद हो तो जाति मे भी कुछ भेद कल्पित किया जा सकता है १ ।' विदेह क्षेत्र में सबही वर्गों के मनुष्य मोक्ष जाते हैं। मनुष्य जाति एक है, उसमें भेद कल्पना करना व्यर्थ है । ब्राह्मण पुत्र बोला, 'दुनियॉ में ब्राह्मण वर्ण श्रेष्ठ माना जाता है। ऊपर के तीन वर्ण ही शुद्ध और उच्च हैं । तुम सबको एकमेक किये देते हो ?" जैनी ने कहा, 'दुनियां का क्या ? दुनियां के लोगों के मुंह में जवान है और मन पर विवेक की लगाम है १. 'गोमांसभक्षणागम्यगमाद्यः पतिते क्षणात् ॥ वर्णाकृत्यादि भेदानां देहस्मिन्न च दर्शनात् । ब्राह्मयादिषु शूद्राद्य गर्भाधान प्रवर्तनात् ॥ ४६१ ॥ नास्ति जातिकृतो भेदो मनुष्याणां गवाश्ववत् । आकृति ग्रहणात्तस्मादन्यथा परिकल्पते ॥ ४६२ ॥ -उत्तर पुराण श्रभयकुमारजी के पूर्व भव वर्णन में श्री गुणभद्राचार्यजी ने यह कथन जाति का घमंड दूर करने के लिए लिखा है । उसी के अनुसार यहां लिखा जा रहा है ।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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