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________________ ( ११० ) सम्मानित, अनुभवशील और वय-प्राप्त साधु थे 19 'संयुत्तनिकाय' ग्रन्थ में स्पष्ट उल्लेख है कि जनता में उनकी विशेष मान्यता थी २ जैनियों के प्रतिद्वन्दी बौद्ध ग्रन्थों में उपयुक्त प्रकार तीर्थकर महावीर का वर्णन मिलना, उनके महान् व्यक्तित्व के गौरव को ही प्रमाणित करता है । सर्वज्ञ होते ही जनता ने प्रत्यक्ष अनभव किया कि लोक का आश्रय और त्राण तीर्थकर महावीर में केन्द्रीभूत है। मनुष्य ही नहीं, देवों के हृदय भी प्रसन्न हो गये। भक्ति प्रदर्शन के लिए वे जम्भक ग्राम मे दौड़े आये। देवों और मनष्यों ने खुव उत्सव मनाया। इन्द्र ने मानो त्याग धर्म का महत्व प्रगट करने के लिए ही तीर्थकर के समोशरण (सभागृह) की रचना की। महावीर ने तो सारी विभति और ऐश्वर्य त्याग दिया था-उनका ममत्व पार्थिव शरीर मे भी शेप नहीं रहा 'था-उनके आत्म तेज से वह भी प्रकाशमान हुआ था, परन्तु इन्द्र ने दिव्य रचना रचकर यह प्रत्यक्ष दिखा दिया कि त्यागधर्म में ही समृद्धि है-महान् आत्मविजयी अपर्व ऐहिक विभूति के होते हुये भी उससे निर्लिप्त रहता है। यदि सुख चाहते हो, ऐश्वर्यशाली वनना चाहते हो और चाहते हो विश्ववन्ध होना तो त्यागधर्म को अपनाओ,--मोही मत बनो--ममता में मत वहो ! भ० महावीर का यही तो आदर्श था-उनके समवशरण से वह स्पष्ट हो रहा था साथ ही भगवान के उदार साम्यवाद का तत्व भी उसकी रचना से व्यक्त हो रहा था । आइये, पाठक, जरा उसे भी देखिए। धर्मचक्र प्रवर्तन से पहले ही इन्द्र की आज्ञा से कुवेर ने समोशरण (सभागृह) की रचना की थी, जिसके चार द्वारों के .. Dialsgues of the Buooha, to 66. २. सनि० १६१ २. समि० ११ -
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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