SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (९) पनजामसांसी, समन्धरोपा, अभिमतं निधिगई गया है। अनिलं कारसगकारी, सरमाय गोगे पप यो हविया ॥ (श्री बमकालिक सूत्र. २ मा० ७) शराब छोड़ दे, मांस छोड़ दे, विकृति । रम-पुष्ट ) भोजन को कम कर, बार बार कायोत्संग, स्वध्याय योग में लीन होजा । (१०) भेसग्नं पियमसं रेई, प्रपनन्नई जो बस्स । सो तस्स मल्ललग्गो, बन्दा नरपं ग संदेहो । जो पोषधि में मांम खिलावे या मम्मति दे वह उसका पिछलग्गू होकर नरक में जाता है । (११) पुग्णषं बीभरवं इन्दियमलसम्भवं पसायं । पाएग नरपरणं विपरिणामो मं ॥१॥ मांस दुर्गध वाला है, वीभन्म है, शरीर के मलों से बना हुमा है, अपवित्र है और नरक में ले जाने वाला है। प्रतः त्याज्य है। १ सपः समूचितानन्त-जन्तु संतान पूषितम् । मरकापनि पापं, कोशनीपात् पिशित सुची ? ॥२॥ मांस में क्षण भर में ही अनन्त सूक्ष्म कीटाणुगों का जन्म पौर विनाश होता है। वह नरक के मार्ग में ले जाने वाला भोजन है । कौन बुद्धिमान मे मांम को खाय ?। २ पागात पातु म विपिन्चामाखात मंस पेसीतु । सर्व शिष पायो भलिपोर निनोपजीपालं ॥३॥ (घोष माला प्रकाश लोक पूनर टीका) मांस कच्चा हो या पकाया हमा, उसकी हर एक फांक में निर्वाध रूप से निगोद के जीव उत्पन्न होते हैं। ३
SR No.010163
Book TitleBhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherBhikhabhai Kothari
Publication Year1957
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy