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________________ [१३] ग्रह (धनादि संग्रह ); (३) पंचेन्द्रिय जीव का वष; तथा (४) मुग्दे का भक्षण ( मामाहार) ___ (५-६) चहि गणेहि जोवा रायताए कम्म पति, सताए कम्मं पकरेता, ऐरएसु उपबति तंजहा-महारंभ पाए महापरिगह पाए, पचिरियबहेणं कुणिमा हारेणं । (पो उबबाई सूत्र) (भो स्थानागं सूत्र स्थान ४) महारम्भ, महापरिग्रह, मामाहार व पचेन्द्रिय वष से बाधे हुए कर्म के उदय से नारको को प्रायु व नारकी के शरीर बनते है। (७) भुजमाणे सुरं मंसं परिवा परंयमे प्रय पर भोई प, तुंदिरमे विश्लोहिए। माउयं नरए कंजे, जहाँ एस व एमए ॥७॥ ( उत्तराध्यपन ० ० ७ गा० ७) मदिग पान, माम भक्षग, गडापन प्रादि में नारको की प्रायु का वध होता है। (८) हिसे वाले मुसाबाई, माईल्ने पिसणे सो भुंगमाणे सुरं मंसं, सेय मेति मन्नई ॥६॥ तुहं पियाईमसाई, गंगा सोलगालिये। बाइम्रो सिमपार, अग्गिवणारा सो ॥६॥ (उत्तराप्ययन स० प्र० ५ गा० १० १९०७) हिमक प्रज, भूटा, मायावी, चुगलखोर, गठ तथा माममदिरा भक्षी होता है और समझता है कि यहो जीवन का मानन्द है। तुझे यदि मांम, मांस की पकाई हुई फांक प्रिय है तो तुं भी उसी प्रकार खाया व पकाया जायगा।
SR No.010163
Book TitleBhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherBhikhabhai Kothari
Publication Year1957
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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