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________________ महावीर की दृष्टि में शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी अर्थात् प्रादर्श शिक्षक, १. सभी शास्त्रों का ज्ञाता होता है । २. लोकमर्यादा का ध्यान रखता है । ३. तृष्णाजयी और अपरिग्रही होता है । ४. उपशमी होता है । ५. छात्रों के प्रश्न, जिज्ञासा और सन्देह को समझकर उनका सन्तोषजनक समाधान करता है | ६. प्रश्नों के प्रति सहनशील होता है । ७. स्व-पर निन्दा से ऊपर उठा हुआ होता है । ८. गुणनिधान, स्पष्ट भाषी एवं मिष्टभाषी होने के कारण सबका मन हरने वाला होता है । ७५ आदर्श शिक्षक का एक अन्य परमावश्यक गुरंग यह है कि उसे परमार्थी होना चाहिए । यदि उसने स्वयं की सन्तुष्टि के लिए ज्ञानोपार्जन किया है और उससे छात्रों का भला न करपाता है तो वह शास्त्र ज्ञाता होते हुए भी मूर्ख ही है :~~ पंडिय पंडिय पंडिय कृरण छोडि वितुल कडिया | पय-प्रत्थं तुठ्ठोसि परमत्य ग जारगइ मूढोसि ॥ भगवान महावीर के उपदेशों में शिक्षक, गुरु आचार्य अथवा उपाध्याय को कितना महत्त्व दिया गया है यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि उनके अनुयायी जिस प्रथम नमस्कार मन्त्र का जाप करते हैं उसमें न केवल प्राचार्यो श्रीर उपाध्यायों को सम्मिलित किया गया है प्रत्युत्त इनका स्थान सर्वस्व त्यागी पूज्य साधुत्रों से भी ऊपर रखा गया है और इनको नमस्कार का अधिकारी बतलाया गया है --- णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ॥ अर्थात् अरिहन्तो को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, प्राचार्यो को नमस्कार हो, उपाध्याों को नमस्कार हो तथा लोक में सभी साधुत्रों को नमस्कार हो । ३. शिक्षार्थी : भगवान् महावीर ने जहां एक ओर प्रादर्श शिक्षक का स्वरूप निर्धारित किया है वहीं आदर्श शिक्षार्थी का स्वरूप भी वर्णित किया है क्योंकि शिक्षक और शिक्षार्थी शिक्षा रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं और दोनों के प्रादर्श व्यवहार से ही प्रादर्श शिक्षा सम्भव है । शिक्षार्थी का सर्व प्रथम गुण विनय है । विनय के प्रभाव में कोई भी आदर्श शिष्य नहीं बन सकता और ज्ञानोपार्जन नहीं कर सकता । शिक्षार्थी को श्रद्धावान भी होना चाहिए तथा पढ़ाने का सम्पूर्ण दायित्व शिक्षक पर न सौंप कर स्वयं भी पढ़ने का, सीखने का सच्चा उद्यम करना चाहिए ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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