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________________ महावीर की दृष्टि में शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी - • प्रो० कमलकुमार जैन AnanARAM annow युग-द्रष्टा महावीर : भगवान महावीर युग द्रष्टा थे। उनके उपदेशों का गम्भीर अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि जीवन का ऐसा कोई अंग और क्षेत्र नहीं है जो उनकी केवलज्ञानी दृष्टि से बच गया हो और जिन पर चलकर आधुनिक काल की अनेकानेक समस्याओं का सीधा, व्यावहारिक और आदर्श समाधान प्राप्त न किया जा सकता हो। .. राजधानी में स्थित 'केन्द्रीय शिक्षा संस्थान' में शिक्षा शास्त्र का शिक्षक होने के नाते स्वाभाविक रूप से मेरी यह जिज्ञासा और रुचि थी कि मैं महावीर स्वामी के शिक्षा-सम्बन्धी विचारों का अध्ययन करूं । और इस अध्ययन के पश्चात् मेरी यह दृढ़ धारणा है कि प्राधुतिक सन्दर्भ में शिक्षा-जगत् में व्याप्त शोचनीय अवस्था को सुधारने के लिए भगवान महावीर के उपदेश अत्यन्त सार्थक और प्रेरणादायक हैं। ___महावीर-वाणी अधिकतर, प्राकृत और संस्कृत भाषा में ही उपलब्ध है, किन्तु मैं भापा की जटिलता में न फंस कर भगवान् महावीर के शिक्षा सम्बन्धी विचारों को सीधेसाद ढग से प्रस्तुत कर रहा है। . . : . १. शिक्षा : .. '' भगवान महावीर के अनुसार 'शिक्षा मानव को आत्म-बोध के माध्यम से मुक्ति की ओर अग्रसर करने वाली प्रक्रिया है, जिसे सूक्ति रूप में 'सा विद्या या विमुच्चए' भी कहा जा सकता है। अर्हन्त तुल्य बनाने की प्रक्रिया : . . . एक अन्य प्रसंग में भगवान कहते हैं, 'शिक्षा व्यक्ति को अर्हन्त तुल्य बनाने की प्रक्रिया है।' इस परिभाषा को समझने के लिए , यह जानने की जिज्ञासा स्वाभाविक ही है कि अर्हन्त कौन है ? अर्हन्त वे महान् आत्मा होते हैं जिनमें राग, द्वेष, अज्ञान, मिथ्यात्व, दान अन्तराय, वीर्य अन्तराय, भोग अन्तराय, उपभोग अन्तराय, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा, काम, निद्रा प्रभृति दूपणों का नितान्त प्रभाव होता है। ___ यदि शिक्षा को इस उद्देश्य प्राप्ति के लिए ढाला जाय तो यह संसार जिसमें प्राज पाप अनाचार, लम्पटता, दुष्टता इत्यादि का ही बोलबाला है, स्वर्ग बन सकता है । यहां
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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