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________________ सामाजिक सन्दर्भ होगी कि वर्तमान युग के संदर्भ में और विचारों के नवीन परिप्रेक्ष्य में ग्राज हम समतादर्शन का किस प्रकार स्वरूप निर्धारण एवं विश्लेषण करें ? ४० महावीर की समता-धारा : ऐतिहासिक अध्ययन से यह तथ्य सुस्पष्ट है कि समता - दर्शन का सुगठित एवं मूर्त विचार सबसे पहले भगवान् पार्श्वनाथ एवं भगवान् महावीर ने दिया । जव मानव-समाज़ विषमता एवं हिंसा के चक्रव्यूह में फंसा तड़प रहा था, तब महावीर ने गंभीर चिन्तन के पश्चात् समता-दर्शन की जिस पृष्ट धारा का प्रवाह प्रवाहित किया, वह ग्राज भी युगपरिवर्तन के बावजूद प्रेरणा का स्रोत वना हुआ है । इस विचारधारा और उनके वाद जो चिन्तन-धारा चली है - यदि दोनों का सम्यक् विश्लेषण करके ग्राज समता-दर्शन की प्रेरणा ग्रहण की जाय और फिर उसे व्यवहार में उतारा जाय तो निस्सन्देह मानव-समाज को सर्वांगीण समता के पथ की ओर मोड़ा जा सकता है । महावीर ने समता के दोनों पक्षों-दर्शन एवं व्यवहार को समान रूप से स्पष्ट किया तथा वे सिद्धान्त बता कर ही नही रह गये किन्तु उन्होंने उन सिद्धान्तों को अपने श्राचरण द्वारा क्रियात्मक रूप भी दिया । सभी आत्माएँ समान हैं : i महावीर ने समता के मूल विन्दु को सबसे पहिले पहिचाना। उन्होंने उद्घोष किया कि सभी आत्माएँ समान हैं याने कि सभी ग्रात्मानों में अपना सर्वोच्च विकास सम्पादित करने की समान क्षमता - शक्ति रही हुई है। उस शक्ति को प्रस्फुटित एवं विकसित करने की समस्या अवश्य है किन्तु लक्ष्य प्राप्ति के सम्बन्ध में हताशा या निराशा का कोई कारण नहीं है । इसी विचार ने यह स्थिति स्पष्ट की कि जो 'आत्मा सो परमात्मा' अर्थात् ईश्वर कोई अलग शक्ति नहीं, जो सदा से केवल ईश्वर रूप में हो रही हुई हो, वल्कि संसार में ही हुई आत्मा ही अपनी साधना से जब उच्चतम विकास साध लेती है तो वही परम पद पाकर परमात्मा का स्वरूपं ग्रहण कर लेती है । वह परमात्मा सर्वशक्तिमान एवं पूर्ण ज्ञानवान् तो होता है किन्तु संसार से उसका कोई सम्वन्ध उस अवस्था में नहीं रहता । · } यह क्रांति का स्वर महावीर ने गुंजाया कि संसार की रचना ईश्वर नही करता और इस परम्परागत धारणा को भी उन्होंने मिथ्या बताया कि ऐसे ईश्वर की इच्छा के बिना संसार में एक पत्ता भी नहीं हिलता । संसार की रचना को उन्होंने अनादि कर्म प्रकृति पर आधारित बताकर ग्रात्मीय समता की जो नींव रखी, उस पर समता का प्रासाद खड़ा करना सरल हो गया । समदृष्टि सम्पन्न बनने की श्रावश्यकता : 1 श्रात्मीय समता की आधारशिला पर महावीर ने सन्देश दिया कि सबसे पहले समदृष्टि बनो । इसे-उन्होंने जीवन-विकाम का मूलाधार बताया । समदृष्टि का शाब्दिक अर्थ है - समान नजर रखना, लेकिन इसका गूढार्थ बहुत गंभीर और विचारणीय है । मनुष्य का मन जब तक सन्तुलित एवं संयमित नहीं होता तब तक वह अपनी
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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