SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन, व्यक्तित्व और विचार को जगत् प्रवाह से पृथक् समझने की वृत्ति बहुत प्रकार की हिंसा का कारण बनती है । सत्य को इदमित्यं रूप में जानने का दावा भी ग्रहंकार का ही एक रूप है । सत्य अविभाज्य होता है और उसे विभक्त कर के देखने से मत-मतांतरों का श्राग्रह उत्पन्न होता है । आग्रह से सत्य के विभिन्न पहल ग्रोझल हो जाते हैं । २६ सम्पूर्ण मनीषा को नया मोड़ : मुझे भगवान् महावीर के इस अनाग्रही रूप में, जो सर्वत्र सत्य की झलक देखने का प्रयासी है, परवर्ती काल के अधिकारी भेद, प्रसंग भेद आदि के द्वारा सत्य को सर्वत्र देखने की वैष्णव प्रवृत्ति का पूर्व रूप दिखाई देता है । परवर्ती जैन आचार्यों ने 'स्याद्वाद' के रूप में इसे सुचितित दर्शन शास्त्र का रूप दिया और वैष्णव आचार्यों ने सव को अविकारी-भेद से स्वीकार करने की दृष्टि दी । भगवान् महावीर ने सम्पूर्ण भारतीय मनीपा को नये ढंग से सोचने की दृष्टि दी । इस दृष्टि का महत्त्व और उपयोगिता इसी से प्रकट होती है कि आज घूम फिर कर संसार फिर उसी में कल्याण देखने लगा है !: सत्य और अहिंसा पर उनकी बड़ी दृढ़ प्रास्था थी । कभी-कभी उन्हें केवल जैनमत के उस रूप को, जो ग्राज जीवित है, प्रभावित और प्रेरित करने वाला मानकर उनकी देन को सीमित कर दिया जाता है । भगवान् महावीर इस देश के उन गिने-चुने महात्मात्रों में से हैं जिन्होंने सारे देश की मनीषा को नया मोड़ दिया है। उनका चरित्र, शील, तप और विवेकपूर्ण विचार, सभी अभिनन्दनीय हैं । ....
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy