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________________ आत्मजयी महावीर २७ चरित्र-बल नेतृत्व के लिए प्रावश्यक : ___ हमारे पूर्वजों ने मन-वचन-कर्म पर संयम रखने को एक शब्द में 'तप' कहा है। तप से ही मनुष्य संयतेन्द्रिय या जितेन्द्रिय होता है, तप से ही वह 'वशी' होता है, तप से ही वह कुछ कहने की योग्यता प्राप्त करता है । विभिन्न प्रकार के संस्कारों और विश्वासों के लोग तर्क से या वाग्मिता से नहीं, बल्कि शुद्ध, पवित्र, संयत चरित्र से प्रभावित होते हैं। युगों से यह वात हमारे देश में बद्धमूल हो गई है। इस देश के नेतृत्व का अधिकारी एक मात्र वही हो सकता है जिसमें चारित्र का महान गुण हो । दुर्भाग्य वश, वर्तमान काल में इस ओर कम ध्यान दिया जा रहा है। जिसमें चरित्र-बल नहीं वह इस देश का नेतृत्व नहीं कर सकता। . भगवान् महावीर जैसा चरित्र संपन्न, जितेन्द्रिय, आत्मवशी महात्मा मिलना मुश्किल है । सारा जीवन उन्होंने आत्म-संयम और तपस्या में विताया। उनके समान दृढ़ संकल्प के आत्मजयी महात्मा बहुत थोड़े हुए हैं। उनका मन, वचन और कर्म एक दूसरे के साथ पूर्ण सामंजस्य में थे। इस देश का नेता उन्हीं जैसा तपोमय महात्मा ही हो सकता था। हमारे सौभाग्य से इस देश में जितेन्द्रिय महात्माओं की परम्परा बहुत विशाल रही है। इस देश में तपस्वियों की संख्या सदा बहुत रही है। केवल चरित्र वल ही पर्याप्त नहीं है । इसके साथ और कुछ भी आवश्यक है । अहिंसा, अद्रोह और मैत्री: ____ यह 'और कुछ भी हमारे मनीषियों ने खोज निकाला था । वह था अहिंसा, अद्रोह और मैत्री । अहिंसा परम धर्म है, वह सनातन धर्म है, वह एक मात्र धर्म है, आदि बातें इस देश में सदा मान्य रही हैं । मन से, वचन से और कर्म से अहिंसा का पालन कठिन साधना है । सिद्धान्त रूप से प्रायः सभी ने इसे स्वीकार किया है पर आचरण में इसे सही-सही उतार लेना कठिन कार्य है । शरीर द्वारा अहिंसा का पालन अपेक्षाकृत आसान है, वाणी द्वारा कठिन है और मन द्वारा तो नितांत कठिन है। तीनों में सामंजस्य बनाये रखना और भी कठिन साधना है। __ इस देश में 'अहिंसा' शब्द को बहुत अधिक महत्त्व दिया जाता है। यह ऊपर-ऊपर से निपेधात्मक शब्द लगता है लेकिन यह निषेधात्मक इसलिए है कि आदिम सहजात वृत्ति को उखाड़ देने के उद्देश्य से बना है। अहिंसा बड़ी कठिन साधना है। उसका साधन संयम है, मैत्री है, प्रद्रोह बुद्धि है और सबसे बढ़कर अन्तर्नाद के सत्य की परम उपलब्धि है। अहिंसा कठोर संयम चाहती है । इन्द्रियों और मन का निग्रह चाहती है, वाणी पर संयत अनुशासन चाहती है और परम सत्य पर सदा जमे रहने की अविसंवादिनी बुद्धि चाहती है। सबसे बड़े अहिंसावती: ____ भगवान महावीर से बड़ा अहिंसाव्रती कोई नहीं हुआ। उन्होंने विचारों के क्षेत्र में क्रान्तिकारी अहिंसक वृत्ति का प्रवेश कराया । विभिन्न विचारों और विश्वासों के प्रत्याख्यान में जो अहंकार भावना है, उसे भी उन्होंने पनपने नहीं दिया। अहंकार अर्थात् अपने आप
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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