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________________ जीवन, व्यक्तितत्व और विचार आपस में कैप बढ़ गया और परस्पर लोगों के सिर फूटने लगे। इसका प्रभाव राजनैतिक क्षेत्र में भी पड़ा और उसमें भी विपम परिस्थिति पैदा हो गयी। चारों ओर हिंसा, असत्य, शोपण, अत्याचार और अनाचारों का साम्राज्य हो गया। धर्म के नाम पर मनुष्य उसके विकारों का गुलाम बन गया । मानवाधिकार नष्ट-भ्रष्ट हो गया । व्यक्ति की स्वतंत्रता का कोई प्रश्न ही शेप नहीं रहां । सर्वत्र अराजकता फैल रही थी। मनुष्य में श्रद्धा और प्रास्था मिट गयी थी। धर्मगुरु स्वार्थी बन गये थे। देश की स्थिति दयनीय बन गयी थी। अगरण मूक पशु एक दयालु महापुरुप के अवतार की प्रतीक्षा में थे। अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह यादि मानवोचित उदात्त गुण मृतप्राय थे। सर्वोदय की भावना मिट चुकी थी। जीवन की उज्ज्वलता नष्ट हो रही थी। जनता अशांत होकर एक युगपुरुप की प्रतीक्षा में टकटकी लगाये खड़ी थी। जीवन और व्यक्तितत्व : __ऐसी भयंकर परिस्थिति में वैशाली के कुण्डग्राम (कुण्डपुर) के ज्ञातृवंशीय राजघराने में ईसा से ५६६ वर्ष पूर्व वर्षमान नामक एक तेजस्वी वालक पैदा हुआ। वह चैत्र का मास, ग्रीष्म ऋतु, शुक्ल त्रयोदशी का दिन, मध्यरात्रि की वेला थी। पिता राजा सिद्धार्थ और मां रानी त्रिशला तो पुलकित हुए ही, इस बालक के जन्म से सारा राज्य आनंदित हो उठा। जव से बालक मां के पेट में आया था, तभी से वंश की सुख-समृद्धि एवं मानमर्यादा में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई थी। इसी से बालक का नाम उसके गुणों के अनुरूप वर्षमान रखा गया। यद्यपि वाद में यह वर्षमान महावीर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। फिर भी वर्षमान के अन्यान्य सार्थक गुणों के कारण महावीर के अतिरिक्त वे सन्मति, वीर, अतिवीर के नाम से भी पुकारे जाते थे। जीवन के चरम विकास तक बढ़ते रहने से वे वर्षमान थे। उनका ज्ञान निर्मल होने से वे सन्मति थे । वे वीर से अतिवीर और प्रतिवीर से महावीर बने । पितृकुल की अपेक्षा से वर्धमान ज्ञातृपुत्र या णात्पुत्र और काश्यप भी कहलाते थे। इसी प्रकार मातृकुल की अपेक्षा से वे लिच्छवीय और वैशालीय भी कहे गये हैं। महावीर राजकुमारोचित बाल्य जीवन को पार कर जव यौवन में पहुंचे तव एक रूपवती कन्या यशोदा के साथ महावीर का विवाह हुया । परन्तु दिगम्बर मान्यता है कि उनका मन प्रारम्भ से ही संसार, शरीर और भोगों से सर्वथा विरक्त होने से वे विवाह के लिये सहमत नहीं हुए। लोक कल्याण की ओर उनका विशेप आकर्पण था । इसलिए महावीर ने गृहस्थाश्रम की अपेक्षा मुनि जीवन को ही विशेष पसंद किया। लगभग तीस वर्ष की अवस्था में उन्होंने कठोर साधनापथ को सहर्ष स्वीकार किया। लगभग साढ़े बारह वर्ष की कठोर तपस्या के उपरान्त वैशाख शुक्ल दशमी २६-४-५४७ ई० पूर्व वर्तमान विहार प्रांत के भक नामक गांव के बाहर ऋजुकुला नदी के तट पर शालवृक्ष के नीचे उन्हें सम्पूर्ण ज्ञान अर्थात् सर्वज्ञत्व की प्राप्ति हुई और वे सर्वन, तीर्थंकर, गणनायक, अर्हत, परमात्मा, जिनेन्द्र आदि विशिष्ट विशेपणों के अधिकारी हो गये। कठोर तपस्या के काल में महावीर को मनुष्यकृत, देवकृत एवं पशुकृत अनेक दुर्वर
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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