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________________ १८६ हिंसा के प्रायाम : महावीर और गांधी सब जीवों के प्रति ग्रात्मभाव रखने, किसी को त्रास न पहुंचाने किसी के भी प्रति वैर-विरोध-भाव न रखने, अपने कर्म के प्रति सदा विवेकशील रहने, निर्भय बनने, दूसरों को अभय देने, आदि-आदि बातों पर महावीर ने विशेष बल दिया, जो स्वाभाविक ही था । मानव-जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाने और समाज में फैली नाना प्रकार की व्याधियों को दूर करके उसे स्थायी सुख और शांति प्रदान करने के अभिलापी महावीर ने समस्त चराचर प्राणियों के बीच समता लाने और उन्हें एक सूत्र में वांधने का प्रयत्न किया । उनका सिद्धान्त था “जीयो और जीने दो” अर्थात् यदि तुम चाहते हो कि सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करो तो उसके लिए ग्रावश्यक है कि दूसरों को भी उसी प्रकार जीने का अवसर दो । उन्होंने समष्टि के हित में व्यष्टि के हित को समाविष्ट कर देने की प्रेरणा दी । वैयक्तिक तथा सामाजिक जीवन को विकृत करने वाली सभी बुराइयों की ओर उनका ध्यान गया और उन्हें दूर करने के लिए उन्होंने मार्ग सुझाया महावीर की अहिंसा प्रेम के व्यापक विस्तार में से उपजी थी । उनका प्रेम असीम था । वह केवल मनुष्य जाति को प्रेम नहीं करते थे, उनकी करुणा समस्त जीवधारियों तक व्यापक थी । छोटे-बड़े, ऊंच-नीच आदि के भेद भाव को उनके प्रेम ने कभी स्वीकार नहीं किया । यही कारण है कि अहिंसा का उनका महान् आदर्श प्रत्येक मानव के लिए कल्याणकारी था । जिसने राज्य छोड़ा, राजसी ऐश्वर्य को तिलांजलि दी, भरी जवानी में घर-वार से मुंह मोड़ा, सारा वैभव छोड़कर अकिंचन वना और जिसने वारह वर्षो तक दुर्द्धर्षं तपस्या की, उसके ग्रात्मिक वल की सहज ही कल्पना नहीं की जा सकती । महावीर ने रात-दिन अपने को तपाया और कंचन बने । उनकी ग्रहिसा वीरों का ग्रस्त्र थी, दुर्बल व्यक्ति उसका उपयोग नहीं कर सकता था । जो मारने का सामर्थ्य रखता है, फिर भी मारता नहीं और निरन्तर क्षमाशील रहता है, वही अहिंसा का पालन कर सकता है । यदि कोई चूहा कहे कि वह विल्ली पर याक्रमण नहीं करेगा, उसने उसे क्षमा कर दिया है, तो उसे ग्रहिंसक नहीं माना जा सकता । वह दिल में विल्ली को कोसता है, पर उसमें दम ही नहीं कि उसका कुछ विगाड़ सके | इसी से कहा है- “क्षमा वीरस्य भूपरणम्" यही बात अहिंसा के विषय में कही जा सकती है । कायर या निर्वीर्य व्यक्ति ग्रहिंसक नहीं हो सकता । इस प्रकार हम देखते हैं कि महावीर ने अहिंसा का व्यापक प्रचार-प्रसार किया और उसे धर्म का शक्तिशाली ग्रांग बनाया । उस जमाने में पशु वध आदि के रूप में घोर हिंसा होती थी । महावीर ने उसके विरुद्ध अपनी आवाज ऊंची की । उन्होंने लोगों में यह विश्वास पैदा किया कि हिंसा अस्वाभाविक है । मनुष्य का स्वाभाविक धर्म ग्रहिंसा है । उसी का अनुसरण करके वह स्वयं सुखी रह सकता है, दूसरों को सुखी रख सकता है । इस दिशा में हम ईसा के योगदान को भी नहीं भूल सकते हैं । उन्होंने हिंसा का निषेध किया और यहां तक कहा कि यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा गाल भी उसके सामने कर दो । उन्होंने यह भी कहा कि तुम अपने को जितना प्रेम करते हो, उतना ही अपने पड़ौसी को भी करो ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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