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________________ १८६ दार्शनिक संदर्भ श्राध्यात्म विज्ञान की श्रावश्यकता : हम इतिहास के एक निराशामय युग से गुजर रहे हैं। यह दारुण विपत्ति अपनी घोर प्राणघातकता के साथ ग्रागे बढ़ती ही जा रही है । आज यह संसार उस चटशाला के समान मालूम पड़ता है जो उदण्ड, जिद्दी और शरारती बच्चों के कोलाहल से पूर्ण है, जहां के बच्चे एक दूसरे के साथ धक्कामुक्की कर रहे हैं, और अपनी भौतिक संपदात्रों रूपी भद्द खिलौनों का प्रदर्शन कर रहे हैं। हम शांति की कीमत चुकाने को तैयार नहीं हैं । शांति की कीमत है— प्राध्यात्मिक स्वतन्त्रता तथा निष्ठा के आधार पर विश्व की पुनर्व्यवस्था । ग्रात्म-साक्षात्कार से जैसा दृढ़ विश्वास पैदा होता है, वैसा दृढ़ विश्वास विज्ञान हमें नहीं दे पाता है | हमारा प्रांतरिक जीवन रिक्त है । हमने अपने आपको इतना निश्चेष्ट वना लिया है कि हम विवश होकर हर प्रकार के प्रचार तथा प्रदर्शन के शिकार बन गये हैं । यदि हम नहीं संभलते तो इसमें संदेह नहीं कि एक दूसरा अन्धयुग संसार को श्रावृत कर लेगा । आधुनिक युग की इस स्थिति से परित्रारण पाने के लिये प्राध्यात्म विज्ञान की प्रावश्यकता है जो भावनात्मा को मुक्त करता हो, जो मनुष्य के मन में भय को नहीं परन्तु ग्रास्था को ग्रौपचारिकता को नहीं, स्वाभाविकता को, यंत्रिक जीवन की नीरसता को नहीं, नैसर्गिक जीवन की रसात्मकता को बढ़ावा देता है । ...
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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