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________________ ३१ N/miADAV आधुनिक दार्शनिक धारणाएं और महावीर • पं० श्रुतिदेव शास्त्री V महावीर बचपन से ही त्याग, तपस्या और विशेष चिन्तन की अवस्था में रहस्यावृत्त - जैसे रहते थे और यही कारण था कि वे शैशव के अनन्तर तरुणावस्था में ही घर छोड़कर तपस्या के लिए निकल पड़े थे । उन्होंने क्षुवा, पिपामा, दुःसह दुखों पर विजय पाकर अतिकृच्छ तपस्या की और वे सभी ग्रासवों से मुक्त होकर 'जिन' हो गए थे । वे परमेष्ठी, केवली और सच्चिदानन्द स्वरूप जिन थे। जिनत्व प्राप्ति के बाद वे मैत्र और करुणावस्था में दुःखदग्ध संसार को मोक्ष - मार्ग के उपदेश के लिए जन-सामान्य के बीच निकल पड़े थे । वे अन्तिम तीर्थंकर 'जिन' थे और उन्होंने जैन धर्म को सम्पूर्णता प्रदान की थी । महावीर कालीन दार्शनिक धारणाएं : भगवान् महावीर के समय मगध में पराक्रमी शिशुनागवंश का विस्तृत और दृढ़तम शक्ति-सम्पन्न राज्य था, पश्चिम में काशी जनपद का दृढ़ राज्य था तथा गंगा के उत्तर वज्जी लिच्छवी संघ का सुदृढ़ गणतन्त्र - शासन था । जनता मुखी सम्पन्न थी । ग्रार्थिक और राजनीतिक स्थितियां दृढ़तर थी । सांसारिक सुख भोगों के आवरण में जन-सामान्य लिपटा पड़ा था । ऐसे समय में समाज में अध्यात्मवाद की एक नवीन प्रतिक्रिया आगे बढ़ती है । यही कारण था कि उस समय इस पूर्वांचल प्रदेश मे छह उपदेष्टा श्राचार्य गौर उनके संघ अध्यात्मवाद की पृथक्-पृथक् व्यवस्था प्रस्तुत कर रहे थे तथा जनता को अपना अनुयायी वना रहे थे । इनमें प्रकुध कात्यायन, अजित केशकम्बली, मक्खलि गोशाल, संजय वेलट्ठीपुत्र, बुद्ध तथा तीर्थकर निर्ग्रन्थ महावीर प्रमुख थे। सभी चाचार्य अपने-अपने ढंग से अपने सिद्धान्तों का प्रचार कर रहे थे । इनमें कोई देववादी था, कोई ऐहिकवादी नास्तिक तथा कोई विभूति प्रदर्शनवादी । इन सभी प्राचार्यों में मक्खलि गोशाल के ग्राजीवक संघ का, बुद्ध के बौद्ध संघ का तथा तीर्थंकर महावीर के जैनसंघ का विशेप प्रभाव जनता और समाज पर था । मक्खलि गोशाल के श्राजीवक सम्प्रदाय के भिक्षु अपने गुरु गोशाल के सामने अपने ग्रलौकिक-विभूति- प्रदर्शन द्वारा जनता पर अधिक प्रभाव डालते थे । वे मारण-उच्चाटन का प्रयोग करते थे, वे अलौकिक शक्ति का प्रदर्शन करते थे, यहां तक कि मक्खलि गोशाल ने महावीर तीर्थकर पर भी अपने मारण का प्रयोग किया था, जैसा कि 'भगवती सूत्र' के स्रोतों से ज्ञात होता है । बुद्ध पर भी उसका मारण प्रयोग हुआ
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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