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________________ वर्तमान नेतृत्व महावीर से क्या सीखे ? १३७ वर्तमान नेतृत्व : । उपर्युक्त दृष्टिकोण के परिप्रेक्ष्य में यह विचारणीय प्रश्न हैं कि वर्तमान नेतृत्व (शासकीय) भगवान महावीर से क्या सीखे ? आज का अधिकतर नेतृत्व देश की श्रद्धाआदर का पात्र नहीं रह गया है । स्वतंत्रता-पूर्व के नेता को अधिकतर अपने व्यक्तिगत गुणों के अाधार पर नेतृत्व प्राप्त होता था । आज नेता आम चुनाव के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होते हैं । चुनाव में सब व्यक्ति अच्छे तथा गुण सम्पन्न ही आयें, यह आवश्यक नहीं है । प्रजातंत्रात्मक शासन-पद्धति में मत पत्र की गणना होती है, उनको तोला नहीं जाता यानी यह जाँच नहीं होती कि मत किसका दिया हुमा है, और किसे दिया है ? आम चुनाव में सफल व्यक्ति विधान सभा या संसद् का सदस्य होकर स्थानीय नेतृत्व प्राप्त कर लेता है। उनमें से ही एक बहुमत दल का नेता बनकर प्रादेशिक नेतृत्व प्राप्त कर लेता है। एक विचारक ने ठीक ही कहा है कि प्रजातंत्र में शासन औसत दर्जे का मिलता है और इस संदर्भ में उन्होंने पशुशाला (गुवाडे) की बात कही थी, कि एक ही गुवाड़े की सब गायों का दूध मिश्रित होता है । कोई गाय निरोग कोई रोगी होती है । इसी प्रकार प्रजातंत्र का यह मुखिया (नेता या मुख्य मंत्री) औसत दर्जे का व्यक्ति होता है। आज के नेतृत्व के संबंध में अधिकतर जनमानस यह है कि वह कुर्सी-प्रेमी (Jobseeker) है । एक विचारक के अनुसार विश्व आज तीन प्रकार के व्यक्तियों में विभाजित हैं-मार्क्स के अनुसार भौतिकवादी, फ्रायड के अनुसार काम-पिपासु तथा शेपपदअभिलाषी। अनर्गल लक्ष्य : अशुद्ध साधन : आज के जन-मानस की यह भी स्पष्ट धारणा है कि आज के नेतृत्व को गांधीजी के अनुयायी होने के दावे के वावजूद उनके लक्ष्य तथा साधन की शुद्धता का आग्रह नहीं है । वह अनर्गल लक्ष्य प्राप्ति के लिये अशुद्ध साधन का प्रयोग करता है। इस सब के अतिरिक्त हमारे नेतृत्व के जीवन में व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन का भेद दिन-प्रति-दिन स्पष्ट होता जा रहा है। चाहे गांधीजी के रहे-सहे प्रभाव के कारण इसे स्पष्ट रूप से स्वीकार न किया जाय किन्तु व्यवहार में यह उतना हो स्पष्ट दीख रहा है। देश में नेतृत्व के जीवन की शुद्धता और पवित्रता का भाव नष्ट होता जा रहा है । जन-मानस की धारणा बनती जा रही है कि आज का अधिकतर नेतृत्व भ्रष्टाचार, पक्षपात, भाई-भतीजावाद आदि में निहित है। यदि हम गत २५ वर्षों के अखिल भारत के काले कारनामों (काण्डों) की तालिका तैयार करें तो एक बहुत बड़ा ग्रन्थ तैयार हो जायेगा । जितने काण्ड सामने आते हैं यदि वे सव सत्य न हों तब भी पर्याप्त मात्रा में उनमें सत्य निहित रहता है, इसमें सन्देह नहीं। हमारे नेतृत्व ने इस प्रकार के काण्डों की पुनरावृत्ति न हो इस प्रकार का कोई ठोस उपाय नहीं खोजा । शासकीय नेता का व्यवहार अधिकतर इस प्रकार का होता है कि वह पहले उसकी सच्चाई से इन्कार करता है, जांच कराने की बात कहता है । जांच में प्रत्येक संभव
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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