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________________ शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के विकास-क्रम में महावीर के विचार १२५ (२) परम्पर अनाक्रमण । (३) आर्थिक राजनीतिक या सैद्धांतिक कारणों से परस्पर किसी देश के प्रांतरिक मामलों में हस्तक्षेप का अभाव । (४) परस्पर लाभ की समानता । (५) शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व । जियो और जीने दो : भारतीय स्वतन्त्रता के समय विश्व की राजनीति रूस व अमेरिका के नेतृत्व में क्रमशः समाजवादी एवं प्रजातन्त्रीय विचारों के अनुरूप दो खेमों में बंटी हुई थी। दुनिया के अधिकांश देश इनमें से किसी एक के समर्थन में ही अपने वैदेशिक कर्तव्य की इति श्री समझते थे। ऐसे समय भारत ने गुटीय राजनीति से तटस्थ रहने की घोपणा कर विश्व राष्ट्रों के लिए नया मार्ग प्रशस्त किया । जिस प्रकार भगवान् महावीर ने अहिंसा की व्याख्या करते हुए स्पप्ट किया कि एगो विरई कुज्जा, एगग्रोय पवत्तणं । असजमे नियन्ति च, संजमे य पवत्तणं ।। (जहां हिंसा, असत्संकल्प, दुराचरण से निवृत्त होना है वहां अहिंसा, दया, प्रेम, करुणा, संयम तथा प्राणी रक्षा में प्रवृत्त होना भी है । ) उसी प्रकार भारत की तटस्थता नीति के रूप में हमने जिस नीति को स्वीकार किया वह केवल निपेवकारी नही थी । उसका लक्ष्य विश्व की राजनीति से अलग होना नहीं था अपितु गुटीय आधार पर विभक्त विश्व को जिसके नेता वात-बात पर ग्राणविक युद्ध की वमकी देते थे, शांति का सही मार्ग बताकर Live and Let Live जीग्रो और जीने दो के रूप में सहअस्तित्व का प्रतिपादन करना था। पिछले दो दशकों में विश्व की राजनीति शीतयुद्ध के तनावपूर्ण वातावरण से ग्रस्त रही है । युद्ध न होते हुये भी युद्ध के भय से सम्पूर्ण मानवता आक्रान्त थी। सद्भावना एवं शांति के लिए स्थापित संयुक्त राष्ट्र के मंच पर राष्ट्र एकत्र तो होते, पर उनमें पारस्परिक सन्देह अविश्वास के भाव अभी दूर नहीं हुए थे । यही कारण था कि चीन जैसे विशाल देश को संयुक्त राष्ट्र में स्थान पाने के लिए वर्षो संघर्प करना पड़ा। लगता है विश्व शक्तियों को अब धीरे-धीरे सहअस्तित्व के सिद्धांत की उपादेयता एवं महत्व का ज्ञान होने लगा है । यही कारण है कि सदा एक दूसरे का विरोध करने वाले रूस व अमेरिका जैसे राष्ट श्राज कई स्तरों पर परस्पर एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं। यह भारतीय विदेश नीति के सिद्धांतों की महत्वपूर्ण विजय है । माईकेल फुट के शब्दों में “संसार स्वतन्त्र भारत का ऋणी है कि उसने हम सभी को बल्कि सारे संसार को शक्ति जन्य दोपों से बचाया है। नहीं तो सम्भव था हम सभी विनाश के गर्त मे पहुंच गये होते।"
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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