SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ राजनीतिक संदर्भ को भी जीने का अधिकार देना होगा । जिस दिन हम इम चिरन्तन मत्य को स्वीकार कर लेंगे तभी पूर्ण साधक होने का दावा कर सकेंगे।" भगवान् महावीर अपने समस्त सिद्धान्तों, नीतियों, आदर्श एवं उपदेशों के माध्यम से एक समतामयी समाज की रचना करना चाहते थे जहां प्रत्येक प्राणी बिना किसी भय, बाहरी दवाव तथा वन्धनों से मुक्त होकर स्वतन्त्र रूप से रह सके । ऐसे ही समाज की रचना के लिए उस मौन मूक साधक ने हिंसा के ताण्डव नृत्य के विरोध में अहिंसात्मक रूप से जिस क्रान्ति का शंखनाद किया उसकी उपादेयता आज भी रामझी जा रही है। यही कारण है कि आज के इस अति भौतिकवादी वैनानिक युग मे भी मम्र्ण मानव जाति को विनाश से बचाने के लिए शान्तिपूर्ण सहनस्तित्व की विचारधारा को स्वीकार किया जा रहा है। युद्ध से शान्ति नहीं : "युद्ध से शान्ति नहीं हो सकती" इस सत्य का ज्ञान विश्व शक्तियों को बडे कटु अनुभवों के वाद हुया । अन्यथा पिछली अर्द्ध शताब्दी में हुए दो विश्व युद्ध तथा अन्य अनेक छोटे-बड़े युद्ध मनुप्य के महानाश के कारण न वनते । वियतनाम में लडे जाने वाले लम्वे युद्ध ने यह भी सिद्ध कर दिया कि आज के युग में समस्याओं का समाधान युद्धों ने नहीं किया जा सकता है" अतः अमरीका जैसी अपराजेय अाधुनिकतम शक्ति को भी वार्ता के लिए विवश होना पड़ा । भारत ने सहनस्तित्व के सिद्धान्त को समय पर समझ कर स्वतन्त्रता के प्रारम्भ से ही उसे अपनी विदेश नीति के मान्य मिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया है। विदेश नाति के निर्देशक तत्व : भारतीय संविधान के अध्याय ४ अनुच्छेद ५१ में भारत की विदेश नीति के लिए निर्देश दिए गए हैं(१) राज्य अन्तर्राष्ट्रीय शक्ति और सुरक्षा की उन्नति का प्रयास करे । (२) राज्य राष्ट्रों के बीच न्याय और सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाये रखने का प्रयास करे। (३) राज्य अन्तर्राष्ट्रीय विधि और संधि बंधनों के प्रति आदर बढ़ाने का प्रयत्न करे। (४) राज्य अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने का प्रयास करे और तदर्थ प्रोत्साहन दे। पिछले पच्चीस वर्षो से हमारी विदेश नीति के मूलभूत आधार ये निर्देशन ही रहे हैं । हमारी सक्रिय तटस्थता नीति अनुच्छेद ५१ का ही विस्तृत रूप है । इसे अधिक व्यापक स्वरूप प्रदान करने के लिए सन् १९५४ में स्वर्गीय प्रधान मंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें पंचशील के निम्न सिद्धांतरूप में प्रतिपादित किया(१) सब देशों द्वारा परस्पर एक दूसरे देश की प्रादेशिक अखण्डता एवं प्रभुसत्ता का सम्मान ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy