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________________ आर्थिक संदर्भ पशुनों की तरह हांकना और स्वानुशासन को बल देने का तात्पर्य होगा मनुष्य को देवत्व के स्वभाव में ढालना । इस कारण वलात् शासन को जो भी स्थायी रूप से समर्थन देता है उसमें मानवोचित भावनाओं का अभाव ही माना जायगा । श्रपनी ग्रन्तरेच्छा से मनुष्य जो कुछ स्वीकार करता है, उसे वह निष्ठापूर्वक कार्य रूप में भी लेना चाहेगा | स्वानुशासन से बढ़कर कोई भी श्रेष्ठतर नियंत्रण नहीं हो सकता है । स्थायीत्व की स्थिति भी इसी नियंत्रण में होती है | १०८ आधुनिक समाजवादी दर्शन में भी स्वानुशासन को ही सर्वोच्च महत्व दिया गया है । माक्र्से-दर्शन में तीसरा सोपान अराजकतावाद तभी प्रारम्भ होगा जब व्यक्ति-व्यक्ति का स्वानुशासन परिपुष्ट वन जायगा और उस समय राज्य की सत्ता की भी ग्रावश्यकता नही रह जायगी । जैसे बालक को अनुशासित बनाने के लिये कभी कभी भय भी दिखाया जाता है, उसी प्रकार ग्रन्तरिम काल में वर्ग संघर्ष और हिंसा को समर्थन देने की बात ग्राधुनिक विचारधारा में कही गई है । किन्तु अहिंसा की भावना का प्रबल प्रचार किया जाय तो अन्तरिम काल में भी हिंसा ही के जरिये परिवर्तन का चक्र घुमाया जा सकता है । इस प्रकार समाजवादी व्यवस्था के सन्दर्भ में महावीर से मार्क्स तक जो दार्शनिक धारा वही है, उसमें अधिक विभेद नहीं है, बल्कि इस धारा को प्रवाहित करने का अधिक श्रेय "महावीर को ही जाता है । यह श्रेय अधिक महत्वपूर्ण इसलिये भी है कि ढाई हजार वर्ष पूर्व जिस समय समाजवादी शक्ति का कल्पना में भी ग्राविर्भाव नहीं हुआ था, उस समय में महावीर ने समाजवादी अर्थव्यवस्था के प्रेरक सूत्रों को अपने सिद्धान्तों के परिप्रेक्ष्य में प्रकाशित किया | महावीर के अनेकान्त ( अपेक्षावाद), अहिंसा और अपरिग्रहवाद के सिद्धांत स्वयं समाजवादी अर्थव्यवस्था की दार्शनिक रूप-रेखा रूप है । इन सिद्धान्तों के प्रकाश में आधु निक समाजवादी दर्शन को भी नया रूप देकर उसे सर्वप्रिय बनाया जा सकता है । समाजवादी अर्थव्यवस्था को महावीर की देन : एक दृष्टि से तो महावीर को समाजवादी अर्थव्यवस्था का श्राद्य प्रवर्तक ही कहा जा सकता है, फिर भी उस समय अव्यक्त रूप से ही सही महावीर के विभिन्न सिद्धान्तों ने सामाजिक शक्ति के अभ्युदय को प्रेरणा दी । श्राज भी इन सभी सिद्धान्तों में वह क्षमता विद्यमान है जो समाजवादी अर्थव्यवस्था को समन्वित रूप प्रदान करके सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को शान्ति पूर्ण वना सकती है । इन सिद्धांतों के माध्यम से समाजवादी अर्थ व्यवस्था को महावीर की देन निम्न रूप से ग्रांकी जा सकती है; - ( १ ) परिग्रह और उसके ममत्व का भी त्याग यह ग्रनुभव समाजवादी अर्थव्यवस्था के लिये सर्वाधिक प्रेरणाप्रद है । व्यक्तिगत स्वामित्व की यदि स्वेच्छापूर्वक समाप्ति की जा सके तो वह एक शांत क्रांति होगी । यदि यही समाप्ति बलात् की जाती है तो उसकी प्रतिक्रियाओं से मुक्ति पाने में भी लम्बा समय लग जायगा । ममत्व घटाने या मिटाने का भावनामूलक उपाय तो समाजवादी अर्थ व्यवस्था का मूलाधार माना जाना चाहिये । ममत्व के सम्बन्ध में भी एक विन्दु समझ लेना चाहिये । 'मम' याने मेरा और 'त्त्व' याने पना अर्थात् यह भाव मोह दशा बताता है और मोह व्यक्तिगत स्वामित्व में ही
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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