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________________ समाजवादी अर्थ व्यवस्था और महावीर १०७ POLTO COUNTY पाई जाती है । मानव-समता दोनों का साध्य रही किन्तु उसकी प्राप्ति के साधनों का दोनों के बीच भेद अवश्य दिखाई देता है । यह भेद भी इस स्थिति में दिखाई देता है कि वर्तमान जटिल आर्थिक परिस्थितियों में व्यक्ति अपनी स्वेच्छा के प्राधार पर चरित्रशील वन कर समाजनिष्ठ बन सकेगा या नहीं ? मार्क्स ने हिंसा को साधन जरूर बताया है, किन्तु यदि महावीर की त्यागमय भावना को व्यक्ति अपना ले और समाज हित को अपने स्वार्थ से बड़ा मानले तो हिंसा की कोई जरूरत ही नहीं रह जायगी । SMAR किसी भी सिद्धान्त पर जव निष्ठापूर्वक आचरण नहीं किया जाय तो उसकी क्रियान्विति सफल कैसे बन सकेगी ? महावीर ने समता के साध्य को प्राप्त करने के लिये श्रहिंसा का साधन बताया है । ग्रहिंसा सिर्फ नकारात्मक शब्द ही नहीं है कि जहां हिंसा नहीं तो अहिसा का अस्तित्व हो जाता है, किन्तु अहिंसा के विधि रूप का महत्व और भी अधिक है । मन, वारणी और कार्य से किसी भी प्रकार के एक भी प्राण को क्लेश नहीं पहुंचाना हिंसा का लक्षण माना गया है। प्रारण दस बताये गये हैं- पांच इन्द्रियों के, मन, वचन काया, श्वासोश्वास और ग्रायुष्य के कुल दस प्रारण । किसी के आयुष्य को समाप्त करना ही हिंसा नहीं है । बल्कि वाकी के नौ प्राणों में से किसी भी प्राण पर आघात करना भी हिंसा ही है । तो इस सारी हिंसा से बचकर दसों प्राणों की रक्षा का भाव रखना अहिंसा का सम्पूर्ण रूप माना गया है । हंसा का सर्वाधिक महत्व ही सामाजिक होता है । व्यवहार की जो परिपाटी समाज के क्षेत्र में एक व्यक्ति अपने अन्य साथी के साथ बनाता है, वह समाज को और समाज की देन होती है । इस व्यवहार की श्रेष्ठता का मापदंड ग्रहिंसा से बढ़कर दूसरा नहीं हो सकता । ग्रहिंसा की मूल भावना यह होती है कि अपने स्वार्थी, अपनी श्रावश्यकतानों को उसी सीमा तक बढ़ाओ जहां तक वे किसी भी अन्य प्राणी के हितों को चोट नहीं पहुंचाती हों । श्रहिंसा व्यक्ति संयम भी है तो सामाजिक संयम भी । विचारगत संघर्षों के लिये स्याद्वाद और श्राचारगत संघर्षों के लिये यदि श्रहिंसा का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाय तो अपरिग्रहवाद याने कि प्रार्थिक समानता के माध्यम से मानव समता का मार्ग भी निश्चय रूप से निष्कंटक बन जायगा । साध्य के प्रति निष्ठा साधनों के भेद को समाप्त कर देगी । स्वानुशासन या बलात शासन : सारा समाज समतामय बने यह जैन दर्शन का मूल सिद्धांत है । 'सव्वे जीवामित्ती M मे भूएस' की भावना समता को हो परिचायिका है । महावीर का ये जो स्वर इतना पहले गूंजा, उस स्वर का याधुनिक समाजवादी दर्शन पर प्रभाव नहीं पड़ा हो - ऐसा नहीं माना जा सकता है । महावीर और मार्क्स की प्रेरणा के सूत्र कहीं न कहीं अवश्य मिले होंगे । किन्तु ऐसी समाजवादी अर्थ व्यवस्था को स्थापित करने का कौनसा मार्ग अपनाया जाय, स्वानुशासन का या बलात् शासन का ? यह निर्विवाद सत्य है कि मनुष्य एक विवेकशील प्रारणी होता है और उसे पशुओं की तरह हांकने की पद्धति कभी भी समीचीन नहीं बताई गई । बलात् शासन का अर्थ है
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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