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________________ .... - नवीन समाज-रचना में महावीर को विचार-धारा किस : . प्रकार सहयोगी बन सकती है ? .. (इस विषय पर विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत चार चिन्तनशील :. समाज सेवियों के विचार प्रस्तुत हैं । )..... जो भी उत्पादन हो उसे सब बांटकर खायें ............ .विरधीलाल सेठी 18.. .:.... समष्टि के हित के साथ व्यण्टि के-हित के समन्वय की समस्या संसार में सदा से अधिक रही है। व्यक्ति अपने सुख को समाज के सुख से अधिक महत्व देता रहा है और उसकी भौतिक सुख साधन बढ़ाने की तृष्णा का कोई अंत नहीं है। व्यक्ति की यह स्वार्थी वृत्ति ही संसार में व्याप्त विपमता, संघर्ष और अशांति का कारण हैं । अतः महापुरुषों ने व्यक्ति की स्वार्थी वृत्ति पर. नियंत्रण द्वारा उसका समाज के हित के साथ समन्वय करने के उद्देश्य से धर्म और राज्यसत्ता-दो संस्थाओं को जन्म दिया। धर्म का उद्देश्य था व्यक्ति को भौतिक सुख साधनों से निरपेक्ष सुखी जीवन की कला बताना और उसमें ऐसी कर्तव्य . भावना पैदा करना कि वह बिना किसी के दवाव के स्वयं ही इस प्रकार जीवन व्यतीत करे कि दूसरों के सुख में वाधक न बने प्रत्युत अपने सुख के साथ दूसरों के सुख का भी वर्धनं करे । राज्यं सत्ता की आवश्यकता हुई समाज के हित को कर्तव्य भावना से रहित स्वार्थी लोगों पर नियंत्रण रखने के लिए । परन्तु धर्म को अधिक महत्व दिया गया क्योंकि समष्टिगत कर्तव्य की भावना के विना राज्य सत्ता भी अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकती। वह वहीं सफल हई है जहां या तो राज्य सत्ता कर्तव्य भावना वाले निःस्वार्थ व्यक्तियों के हाथ में थी यां सत्तावीशों पर ऐसे लोगों का अंकुश था। ऐसा न होने पर, लोकतांत्रिक राज्यसत्ता भी असफल ही रही है और संघर्ष के वातावरण और चरित्र संकट ने उग्ररूप - धारण कर लिया । ......... :. : : ........ ... .. ..... व्यक्ति भौतिक साधनों से निरपेक्ष सुखी जीवन की कला के महत्व को समझे और विना किसी के दवाव के समाज के सुख में ही अपना सुख समझे, इस उद्देश्य से यह संसार क्या है, क्या किसी ने इसे बनाया है, हमारा: 'मैं' क्या है;-आदि-प्रश्नों के भी महापुरुषों . .. .ने दार्शनिक समाधान दिये । आचार - शास्त्र के अाधुनिक महाविद्वान कांट ने भी व्यक्ति के नैतिक जीवन के लिए इस प्रकार के दार्शनिक विश्वास की आवश्यकता को, अनुभव कर
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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