SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८० सामाजिक संदर्भ पुरुष की अपेक्षा नारी सदस्यों की संख्या अधिक होना इस बात का सूचक है कि महावीर ने नारी जागृति की दिशा में सतत् प्रयास ही नहीं किया, उसमें उन्हें सफलता भी मिली थी। चन्दनवाला, काली, सुकाली, महाकाली, कृष्णा, महाकृष्णा आदि क्षत्राणियां थीं तो देवानन्दा इत्यादि ब्राह्मण कन्याएं भी संघ में प्रविष्ठ हुई। , 'भगवती सूत्र' के अनुसार जयन्ती नामक राजकुमारी ने महावीर के पास जाकर गम्भीर तात्विक एवं धार्मिक चर्चा की थी। स्त्री जाति के लिए भगवान् महावीर के प्रवचनों में कितना महान् आकर्षण था, यह निर्णय भिक्षुणी व श्राविकाओं की संख्या से किया जा सकता है। . नारी जागरण : विविध आयाम : __ गृहस्थाश्रम में भी पत्नी का सम्मान होने लगा तथा शीलवती पत्नी के हित का ध्यान रख कर कार्य करने वाले पुरुष को महावीर ने सत्पुरुष बताया । सप्पुरिसो.... पुत्तदारस्स अत्याए हिताय सुखाय होति....विधवाओं की स्थिति में सुधार हुमा । फलस्वरूप विधवा होने पर वालों का काटना आवश्यक नहीं रहा । विधवाएं रंगीन वस्त्र भी पहनने लगी जो पहले वजित थे । महावीर की समकालीन थावघा सार्थवाही नामक स्त्री ने मृत पति का सारा धन ले लिया था जो उस समय के प्रचलित नियमों के विरुद्ध था। 'तत्थरण' वारवईए थावधा नाम गाहावइणी परिवसई अड्ढा जाव....। महावीर के समय में सती प्रथा बहुत कम हो गई थी। जो छुपपुट घटनाएं होती भी थीं वे जीवहिंसा के विरोधी महावीर के प्रयत्नों से समाप्त हो गई। यह सत्य है कि सदियों पश्चात् वे फिर प्रारम्भ हो गई। बुद्ध के अनुसार स्त्री सम्यक सम्बुद्ध नहीं हो सकती थी, किन्तु महावीर के अनुसार मातृजाति तीर्थंकर भी बन सकती थी। मल्ली ने स्त्री होते हुए भी तीर्थंकर को पदवी प्राप्त की थी। महावीर की नारी के प्रति उदार दृष्टि के कारण परिवाजिका को पूर्ण सम्मान मिलने लगा। राज्य एवम् समाज का सवसे पूज्य व्यक्ति भी अपना आसन छोड़ कर उन्हें नमन करता व सम्मान प्रदर्शित करता था। 'नायधम्मकहा' यागम में कहा है तए णं से जियसत्त, चोक्खं परिव्वाइयं एज्जमाणं पासइ . सिहासणाम्रो प्रवभूठेई....सक्कारेई प्रासणेणं उवनि मंतेई । इसी प्रकार बौद्ध-युग की अपेक्षा महावीर युग में भिक्षुणी संघ अधिक सुरक्षित था। महावीर ने भिक्षुणी संघ की रक्षा की ओर समाज का ध्यान आकर्षित किया। आज जब देश व विदेश में महावीर स्वामी की पच्चीस सौं-वी निर्वाण तिथि मनाई जा रही है, यह सामयिक व अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होगा कि महावीर स्वामी के उन प्रवचनों का विशेष रूप से स्मरण किया जाए जो पच्चीम सदी पहले नारी जाति को पुरुष के समकक्ष खड़ा करने के प्रयास में उनके मुख से उच्चरित हुए थे।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy