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शिवपुराण मे स्वय शिद ने ऋषभ को अपना अवतार कहा
है। यथा
इत्थप्रभव ऋपभोऽवतारी हि शिवस्य मे । सता गतिर्दीनबन्धुर्नवा कथित रत्तव ।।
शिव पुराण ४/४८ ऋगवेद के प्रथम मण्डल मे ऋपभदेव के लिये एक सूक्त मे उन्हे प्रजात्रो को धनादि से प्रसन्नता प्रदान करने वाला राजा कहा है और इन्द्र को कृषि जीषियो का स्वामी बताया गया है । यथा
आ चर्षणिप्रा वृषभो जनाना राजा कृष्टीना पुरुहूत इन्द्र । स्तुत श्रवस्यन्नवसोप मद्रिग युक्त्वा हरि वृषणा याद्यर्वाड ॥
ऋक १/२३/१७७
प्रत
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रामह णव कमल कोमल मणहरवर वल कति सोहिल्ज , उसहस्स पायकमल ससुरासुर वदिय सिरसा ॥
- देव मनुष्य जिनकी वन्दना करते है । वह कोटि सूर्यों की प्रभा के समान है, उन्हे नित्य त्रिकाल वन्दना है।
--मुनि श्री विद्यानन्द जी (श्री पुरुदेव भक्ति गगा से साभार)