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________________ ( ८५ ) है । तारे एक नदनवेली दुल्हन की साडी पर लगे सितारो की भाति चम चमा रहे है । तारो के मध्य मे चान्द आनन्द अमृत को बिखे - रता हुआ प्रह्लादित हो रहा है। नदी का कल-कल मधुकर शब्द और शीतल मन्द पवन, उत्साह में मीठा दर्द पैदा कर रहे हैं। ++ सेनापति ऐसे समय में अपनी सम्पूर्ण सेना के मध्य मे सडा हुआ नये-नये आदेश सुना रहा था । चतुरगिणी सेना को उत्माहित कर रहा था । प्रात. के प्रयाग का सन्देश सुना रहा था । सेनापति के ओज और उत्साह भरे वाक्यो को सुन-सुनकर प्रत्येक सनिक उत्साहित हो उठा । चेहरों पर मूँछे तन उठी। गन भन्न हो उठा। बाहुऐ फड़क उठी । जोश चमक उठा। शोर्य झलक उठा । 1 जय भरत | जय भरत । की गूज से रात्री का शान्त नीरव वातावरण गूजित हो उठा। सोई हुई मीठी नींद मे मस्त जनता चोक उठी। एक दूसरे से पूछने लगे--- " "या बात है "कहाँ ?" "अरे । तुमने सुना नही "यह देखो सुनो" "अरे हा । यह याद तो महाराज भरत की सेना का है। पर इस वक्त ???" .. .. "सेना की जगनाद है । वो "यह तो पूछना ही पड़ेगा किसी मे ?" तभी पास वाले महल की सिकी भी जुली । उनमें से किसी की गर्दन दिखाई दी। फिर मैंने उनसे बन्द करनी नाही। तभी "सुनिए।" · "" "यह नाव क्यो हो दी दया बात है ?"
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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