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________________ भरत का हृदय आज पवित्रता से भरा जा रहा था। सहसा भरत ने एक प्रश्न किया " 'प्रभो। यहा जितने भी प्राणी बैठे है उनमे से क्या कोई आप जैसा तीर्थकर भी कभी बनेगा?' 'हाँ । अवश्य बनेगा। और वह है तुम्हारा पुत्र मारीच ।' 'मारीच । ।। सभी प्रसन्नता से खिल उठे। भगवान ने आगे बताया--- 'यही मारीच अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर होगा।' 'तीर्थकर कितने होगे प्रभो?' 'तीर्थकर तेवीस और होंगे ! -- प्रत्येक अवसर्पिणी काल मे २४ तीर्थकर नियम से होते रहते हैं।' 'आपके बाद कम से कौन-कोन नाम के तीर्थकर होगे।" 'क्रम पूर्वक, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दन नाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपासनाथ, चन्द्र प्रभ, पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयान्स नाथ, वासुपूज्य विमलनाथ, अनन्तताथ, धमनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाथ, मुनिमुद्रतनाय, नामिनाथ, नमिनाथ, पाश्र्वनाथ और महावीर । इस प्रकार तवीस तीर्थकर और होगे। सभी ने जय-जय कार का उच्चारण किया । यथाशक्ति व्रत नियम, मयम धारण करके भगवान को नमस्कार कर के अपने भावो मे पवित्रता का रस घोल-घोल कर, अनुपम और अलभ्य शान्ति लेकर भरत एव सभी सभापद अपने-अपने निवास स्थान को लौट आए। दिव्य ध्वनि बन्द हो गई। वातावरण विल्कुल शान्त हो गया। ईन्द्र ने भगवान से निवेदन किया कि प्रभो जन-जन का हितकारक अब आप अन्य प्रदेशो मे विहार कीजिए।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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