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________________ (७६ ) ससार की भूल भुलैया। हाँ । इस ससार की भुल भुलया मे मानव अपनी मानवता को तिलाजालि भी देने को तत्पर हो उठता है । वह धन, परिवार, और सम्पत्ति को ही सब कुछ मानकर, उनकी चकाचौंध मे चु धिया कर अपना पन खो बैठता है। जबकि संसार के सभी प्रसाधनो की चमक एक अस्थाई चमक है। ठीक गगन मण्डल पर छाए मेघ की विद्य त चमक की तरह। परिवर्तन शील ससार। हा। इस परिवर्तन शील ससार मे क्या स्थाई है ? कुछ भी नही । यदि स्थाई ही होता तो इसे परिवर्तनशील की भाषा नहीं दी जाती । जहा परिवर्तन हे कहा किसको अपना कहा जाय? क्योकि परिवर्तनता के सिद्धान्त से जो आज हमारा है वही कल नही भी हो सकता। -प्राज शिशु है, -~-कल बचपन है, ---परसो जवानी है, और तरसो बुढापा है। फिर ??? फिर मौत का बजता हुआ नक्कारा । मानव मनमूबे बनाता रहता है और परिवर्तन होता जाता है। उस परिवर्तन की बाढ में वहकर मानव नैराश्यताकी मझधार में वह जाता है। फिर ? फिर उसके पास सिवा मृत्यु के कुछ नही रह जाता ! मरता है, फिर जन्म है । मरता है और फिर जन्म है। यो मरण-बीवन परिवर्तन चलता रहता है और प्रात्मा कर्म प्रावरण में ढकती जाती है।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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