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________________ ( ७६ ) पीछे-पीछे जयजय कारो को गू जित उच्चारणो के साथ चल रहा था। सभी के भावो मे दर्शन की उमग थी, उत्साह था। और गौरव भरा अभिवादन था। भरत ने हाथी पर चढे-चढे ही दूर से ही भगल सूचक लहराती हुई मानस्तम्भ की सर्वोच्च ध्वजा दिखाई दी। ज्यो-ज्यो हाथी आगे बढ रहा था त्यो त्यो समवसरण (सभा मण्डप) की अनेक रमणीक और सुन्दरता से ओतप्रोत वस्तुये वेदिया, पताकाएं, आदि दिखाई दे रही थी। ____ कुछ ओर आगे बढे ही थे कि कानो में मधुर वाद्यो का सगीत सुनाई देने लगा । गगन मण्डल के मध्य विमान दिसाई देने लगे। पुष्प की बरसा उन विमानो मे से हो न्ही थी। ___ उस वक्त के मानव को यह एक अद्भुत और आश्चर्य कारी घटना लग रही थी। वह सम्पूर्ण दृश्य को, देखने को अत्यन्त उत्सुक हो उठा। जब समवशरण कुछ ही दूर रह गया तो भरत हाथी पर से उत्तरा । अन्य सभी राजा गण अपने-अपने वाहनो से उतरे । सभी ने परोक्ष समस्कार किया । समूह फिर से जय जय कार दोल उठा। सभी ने देखा कि समवशरण (सभा मण्डप) विशाल है। इतना रमणीक इतना सजाघजा, इतना सौम्य । इतना विशाल समवसरण की रचना किसने की है ? सभी को यह प्रश्न एक रहस्य सा उत्पन्न कर रहा था। विशाल और सभा मण्डप से भी बहुत ऊँचा यह मानस्थम्भ सुन्दर था । अनुपम था। नमवशरण मे अन्दर प्रवेश करते हो सवने देखा उपवन है, खाइया हैं, सुन्दर-सुन्दर पक्षी है, तालाब है पोर स्वर्ण मयी सीढिया है। बहुत ही ऊँचे और रत्नो से सजा
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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