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________________ ( ७४ ) ही होता है। तभी . तभी द्वारपाल ने बड़े हर्षोल्लास के साथ प्रवेश किया उसके कुछ ही क्षण पश्चात् सजाधजा सेनापति भी पाया और तुरन्त उसी क्षण झनझन पायल को बजाती अपनी मधुर खुशी के पुष्प बरसाती एक सेविका ने भी प्रवेश किया । तीनो के चेहरों पर असीम प्रसन्नता, उमग और उत्साह की झलक, छलक रही थी। तीनो ही कुछ कहना चाह रहे थे । कहने को उत्सुक भी थे और यह भी उस क्षण सोच रहे थे कि जो प्रथम आया उसे ही कहना योग्य है। तभी भरत सम्राट ने पूछ लिया "क्या बात है | • • क्या कहना चाहते हो?" "महाराजाधिपति | एक बहुत ही मगल सूचना देने को उपस्थित हुआ हूँ।" द्वारपाल ने उत्तर दिया। ___"और मैं भी स्वामिन कुछ आनन्ददायक सन्देश देने को प्रातुर हूँ।" सेनापति वोल उठा । ___ "प्रभो ! स्वामिन् । .. • मैं भी सुखद सन्देश लेकर उपस्थित हुई है।" सेविका ने मीठी राग मे अभिवादन के साथ निवेदन किया। तभी भरत सम्राट का मन इन तीनो के मगलमय रहस्य भरे सन्देशो के प्रति प्रमुदित हो उठा । वोले " "कहो । कहो | द्वारपाल तुम क्या कहना चाहते हो?" "महाराजाधिपनि । अापके पिता भगवान आदिनाथ जी को कैवल्य ज्ञान की उपलब्धि हुई।" । "अरे" भरत का चित्त प्रसन्नता के मारे खिल उठा। बोले "और तुम क्या कहना चाह रहे हो सेनापति "
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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