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________________ ( ६० ) " भला जो भगवान ठहरे, उन पर क्या प्रशुभ हो सकता है ?" "अरे भैया ? आदिनाथ थे तो पुरुष ही । थे तो सांसरिक प्राणी ही है। अपने शुभाशुभ कर्म से अभी बिल्कुल रहित तो हुए नही थे । पितु कर्मों की कडिया काटने मे तत्पर थे । जब तक कर्मो की कडिया कट न जाती तब तक तो वे असर दिखाएगी ही ?" " गलत | हम नही मानते ।" "क्यो नही मानते " "इसलिए कि जिन्होने छह माह तक घोर तप किया । जिन्होने राज्यपाट परिवार के प्रति किन्चित भी मोह नही किया ऐसे प्रभावशाली महान् श्रात्मा का कर्म कुछ नही विगाड सकते । श्रीर haw 11 हैं तो "शोर क्या ?" "और यदि कर्म फिर भी ऐसी आत्मा का कुछ बिगाड सकते तो 04 .. ار i "हा । हा बोलो तो क्या ?" 9440 "तो समझो वह आत्मा महान् श्रात्मा नही हो सकती !" " कल्पना तो सुन्दर है पर विवेक और न्याय संगत नहीं |" "क्यो ?" "वह इसलिए कि आत्मा प्रभावशाली है, अवश्य है----पर कर्मावरण उसको ढक देते हैं तो उसकी प्रभा उसी तक सीमित रहकर लुप्त सी रह जाती है ।" "यह कैसे ?" जैसे सूर्य प्रभावशाली होता है । होता है भी ?" "हा हाँ । होता है ।"
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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