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________________ ( ५२ ) महाराज नाभि और महारानी तो आज हर्प से मराबोर हो रहे थो। साथ ही साथ अपने आपको भी देख रहे |-जो अब तक प्रात्म-कल्याण के पथ पर चल नहीं सके थे । माज दे वह अवसर प्राप्त कर रहे थे। सिद्धार्थ नामक उपवन ने भगवान ने प्रवेश किण । भरत, बाहुबली के साथ अन्य हजारो राजा महाराजा भी साथ थे। एक स्वच्छ सुन्दर चन्द्रकान्तमणी की शिला पर भगवान पूर्व की ओर मुह करके विराजमान हो गये। परोक्ष "ओम् नम सिद्धच " कहकर दीक्षा ग्रहण की । माये हुए हजारो राजानो ने भी भगवान का साथ देने की अभिलापा से दीक्षा ली और उमग की तरग मे आ प्राकर परिग्रह का त्याग किया। __महिला समाज ने भी यथोचित सयम धारण किया । जनसमूह एव स्वर्ग के देवो के भगवान आदिनाथ की भावभीनी पूजा की। स्तुति की । और अभिगदन कर करके मस्तक मुकाये । ___ आज का यह दिन चैत्र कृष्णा नौमी की सायकालीन सध्या फा था। सारा वातावरण शान्त था । शुद्ध था। पवित्र या और मगलमय था। तष्टि के सृजनहार भगवान् आदिनाथ ने मौन धारण किया और ध्यानस्थ हो वैठ गये। ग्राहस्थ्य मे रचे पचे सासारिक सस्कारों की लडिया काटते काटते, एक ही स्थान पर ध्यानस्थ हुए आज आदिनाय मुनिराज को तीन माह हो गये । अन्य दीसित राजा महागला भी भादिनाथ का अनुकरण कर रहे थे। छह माह का उपवास धारण करते हुए मुनिराज अदिनाय अपने योगो (मन वचन काय) की एकाग्रता में
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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