SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विठाया। साथ ही विशेष सूचना के साथ राज्याभिषेक करते हुये साम्राज्य पद से विभूषित किया । फिर जय नारा गूज उठा। भगवान अदिनाथ ने श्रृष्टि का भार सम्हाला और प्रजा मे रच पच गए। मानव को और भी सानिध्य और सहयोग आदिनाय से मिलने लगा। हाँ । हाँ । एकदिन ब्राह्मी और सुन्दरी दोनो युवा पुत्रिया वहा पहुची जहाँ प्रजापति आदिनाथ अपने साम्राज्य कक्ष में विराज रहे थे। दोनो ने दूर से ही देखा और आपस मे फुसफुसाने लगी। 'पिताजी महान हैं।" "पिताजी सर्व पूज्य है ।" "पिताजी से वडा भूमण्डल पर और कोई नहीं।" "सव पिताजी के आगे आकर झुकते हैं।" "हा । पित्ताजी किसी के आगे भी नही झुकते ।" "क्या कहा?" "हाँ । हाँ । । मैंने सत्य कहा है।" "झूठी।" "क्यो? ??" "ऐसा हो ही नहीं सकता।" "चल पिताजी से ही जाकर पूछले ।" "हा ! हा! पूछले | कौन मना करता है।" और दोनो जा पहुंची अपने पिताजी के पास । आदिनाथ भगवान ने दोनो को देखा । उनके चहरो से प्रश्न की गध झलक रही थी। भगवान आदिनाथ ने कुछ समय पश्चात पूछ ही लिया।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy