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________________ सुनकर दोनो पुत्रियां अति नम्र हो उठी साथ ही विद्या ध्यान हेतु उत्सुक भी हो उठी। भगवान आदिनाथ ने अपने दाहिने हाथ से वर्ण माला का अध्ययन 'ब्राह्मो को कराया और वाये हाथ से इकाई दहाईगणित का अध्ययन सुन्दरी को कराया। सर्वप्रथम दोनो को "नम सिद्धेभ्य" का मगलाचरण याद कराया और फिर शिक्षा की प्राथमिक परम्परा को जन्म दिया। ब्राह्मी ने वर्णमाला के विभिन्न पदो का पूर्ण रूपेण अध्ययन किया और सुन्दरी ने गणितमाला के विभिन्न अध्यायो का मनन किया। स्वाभाविक वोघ और भगवान आदि नाथ का आर्शीवाद दोनो की सफलता से दोनो पुत्रियो ने अपार श्रुति का अभ्यास कर लिया । __उधर पृथ्वी का मानव क्रियानो से अनविज्ञ हो रहा था। कल्पवृक्ष भी रहने से जो भी मिला भूख मिटाने के लिये-सा लिया गया। ना अन्न, ना फल और ना कार्य । मानव असभ्य सा लग रहा था। भगवान आदिनाभ ने देखा मानव नगा है, वाल बढे हुये हैं, शरीर काला है, भूखा है, असभ्य है, मासाहारी भी होने लग गया है। ना मकान, ना परिवार, और ना मोह । ना प्रेम, ना स्नेह और ना वात्सल्य । मानव अबोध है, अनविज्ञ है । र कर्मभूमि का मानव अपने प्रथम और नये चरण में होता भी कैसा ? कौन बोध दे ? कौन राह दिखाये । कौन सृजन करे ? कौन क्रिया बताये। आदिनाय ने सभी मानवो को बुलाया और उनकी और अपनी एक मुस्कराहट की फुहार डाली' मानव इस मुस्कराहट से चोकत सा, चित्रसा, रह गया।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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