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________________ ( २६ ) लहरे उठ रही थी, विशालता लिये हुये फैल रहा था। तभी प्रभात मगल ध्वनित हो उठा। उपा चमक उठी और विभिन्न आवाजो का कलख होने लगा दासिया मगल गीत गाने लगी और प्रभात-भेरी मधुर शहनाई के साथ गूज उठी। ___ मधुर भेरी और शहनाई की मधुर आवाज ने रानी यशस्वत्ती को स्वप्न लोक से बुलालिया। अव रानी के कानो मे सभी ध्वनियाँ गूंजने लगी। रानी ने एक करवट बदली । शरीर अगडाई मे तडक उठा । अग मस्ती से फडक उठा । अलसाईसी, सुस्कराई सी, रानी शया पर से उठी। दासियो ने वरण छूये और स्नान-कक्ष की ओर ले चली। स्नान आदि से निवृत्त हो रानी यशस्वती पति-पादिनाथ के समीप पहुंची। चरण हुये और निकट बैठ गई । प्रादिनाथ ने यशस्वती को सरसरी दृष्टि से अवलोकन किया और मुस्करा उठे। ___ 'आप मुझे देखकर क्यो मुस्करा रहे हैं ? रानी ने मन की उडान को बस में करते हुये पूछा। _ 'लगता है--आज तुम विशेष प्रसन्न दिखाई दे रही हो। .' त्यो यह सच है ना 'क्या इस प्रसन्नता का कारण मुझे भी कहोगी ?' 'कारण तो मुझे भी नहीं मालूम । पर ऐसा लगता है ऐसा लगता है जैसे जैसे · ।' रानी आगे न कह सकी। 'बोलो बोलो, जैसे जैसे क्याए । 'स्वामिन् ! आज मैंने कुछ स्वप्न देखे हैं। और उन स्व के देखने के बाद । "मन जनाले मारने लगा है न्यो यही बात है ना। 'जी प्रभो।"
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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