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________________ १६-कैलाशपति भगवान शिव कैलाश पर्वत पर भगवान आदिनाथ विराजे हुए थे। अखण्ड तपस्या मे लीन । पास ही से एक पतली पर सुहावनी जल की घारा आजकल मे ही बह चली थी। धीरे-धीरे वह अपना विस्तार करती रही और एक नदी का रूप धारण कर बैठी। कैलाश पति भगवान शिव (आदिनाथ प्रर्थात्-जगत के प्रथम स्वामी के चरण सान्निध्य से निकली यह जल की विस्तृतवारा 'गया' कहलाई जाने लगी। __ वृषभ (बैल) चिह्न से चिह्नित और त्रिशूल (तीन प्रकार के शूल-जिनसे ससार के दुखो का सहार किया जाता है—यवासम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान और सम्यक् चरित्र) सहित भगवान आदिनाथ कैलाश पर्वत पर विराजमान थे। पार्वती (पर्व-प्रति, अर्थात् महान् सुखदायक कल्गणकारी 'मोक्षलक्ष्मी) उनके अग-श्रा में समाई हुई थी । तेगवान चहरे पर महान् त्यागी व तप को प्रभा होते हुए भी चहरे में भोलापन (निष्कपटता) झलक रही थी। तभी तो इन्हें भोलानाथ कहते हैं। ___ आपने ही तो सर्व प्रथम पृथ्वी का भरण पोपण किया। पृथ्वी पर के नेकट का शमन किया और इसीलिए पाप 'शम्भू कहलाने लो।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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