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________________ ( १८१ ) 'प्रभो । प्रापके भ्राता के बुरे हाल है। ना मालूम कितने समय से एक स्थान पर खडे हुए हैं शरीर पर लताएं छाई हुई हैं। पत्थर से बने अडिग खडे हुए है । ध्यान अपने आप मे लगा कर खोये हुए हैं। ' 'ऐसा प्यो ? ? " भरत जी का मन एक गहरी वेदना से तडप उठा। ___मालम नही स्वामिन् । उनके पास न तो वस्त्र है और ना मकान ही। _ 'श्रोह । ' भरत, उनसे मिलने को तडप उठे। वे रथ पर विराजमान हो चल पडे । नाहुबली एक पहाड के शिखर पर खडगासन अवस्था मे प्रात्म ध्यान लगाए अचल, अडिग खडे थे। पैरो के पास कई भयकर जहरीले जन्तुनो ने घोसले बना लिए थे। शरीर पर अनेक लताएं छाई हुई थी । भरत ने उनकी तपस्या, त्याग और सयम पहली बार देखा तो-देखते के देखते ही रह गए। उनका हृदय उनसे बात करने को आतुर हो उठा पर बाहुबली तो अपने आप मे सोए हुए थे 'माज से नहीं एक माह से नहीं एक साल से नहीं अपितु बारह साल से । भरत उनके दर्शन करके सीवे भगवान आदिनाथ के समवशरण मे पहुँचे । बारबार नत मस्तक हो । यही प्रश्न किया .. ___'प्रभो । बाहुबली ने इतना कठोर त्याग, संयम अपना रखा है कब से ? और अब तक आत्म ज्ञान क्यो न मिला?' भगवाने ग्रादिनाथ ने दिव्य ध्वनि द्वारा भरत की शका का समाधान किया 'बाहुवली बारह वर्ष से प्रात्म साधना मे लगे हुए है—अव तक प्रात्मज्ञान की उपलब्धि न होने का एक मात्र कारण उनके
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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