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________________ ( १७३ ) दूत ने चक्रवर्ती भरत का प्रेम वात्सल्य और न्यायनीति से भरा सन्देश सुनाया तो प्रकम्पन और जयकुमार दोनो पुलकित हो उठे। स्वत ही मुंह से निकल पडा आखिर बडे, बडे ही होते है। उनमे छोटापन कहाँ ?" प्राज जयकुमार और सुलोचना को विदाई दी जा रही है ! अनेक व्यवहारिक राजा गण आए हुए है । एक प्रानन्द वर्षक और मोहक विदाई महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। रथ और हाथियो पर भेट दिया गया समान रखा जा रहा है। घोडे सजाए जा रहे हैं और गगा पार तक पहुंचाने के लिए अनेक राजा लोग तैयार हो रहे हैं। उधर सुलोचना को आज सुसराल जाने के लिए दुल्हन बनाया जा रहा है। सहेलिया सजा भी रही है और चुटकिया भी ले रही हैं। ज्यो ज्यो कामुकता, भावुकता की बातें करती त्यो त्यो ही सुलोचना सिहर सिहर उठती और एक मीठी मीठी गुद गुदी सी अनुभव मे होती। मगल गीत और मधुर वाजो की ध्वनि के साथ विदा किया। जयकुमार हाथी पर चढा। सुलोचना रथ मैं वेठी और सभी साथ जाने वाले राजा लोग घोडो पर बैठे। सभी ने प्रस्थान किया । मगलकार्य और सुन्दर जोडी की अब वाराणसी मे जगह जगह चर्चा होने लगी। गगा का किनारा आ गया। इठलाती, मदमाती बहती हुई गगा आनन्ददायक लग रही थी । जयकुमार ने यही पर विश्राम करने की घोषणा की। सभी साथ पाए राजाओ को सघन्यवाद विदा किया स्वय के साथी अपने अपने डेरो मे ठहरे । एक भव्य मडप मे सुलोचना अपनी दासियो के साथ ठहरी।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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