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________________ ( १६० ) मीठे-मीठे घुंघरू की आवाज करता हुआ, अनेक पताकाएँ लहराता हुआ, मरिण मोतियो की झालर से सजा हुआ — स्वर्ण निर्मित रथ नाकर स्वययर मण्डप के पास आकर रुका। वाद्य की तेज ध्वनि और रथ को श्रा जाने की पुकार सुनकर राजकुमारो के दिल धडकने लगे । मन मचलने लगे । नेत्र, दर्शन को फड़कने लगे । सब सम्हत सम्हल कर बैठने लगे । उदासी और प्रतीक्षा की व्याकुलता को मिटाने लगे । तभी आगे आगे दासिया, पीछे कंचुकी (परिचायिका) सुलोचना को सम्हाले हुए और उसके पीछे सहेलियो का झुण्ड सभा मण्डप मे आया । सब उत्सुक हो उठे कि 'सुलोचना' को देखा जाय । पर वह तो इन सबमे घिरी हुई थी I 'सुलोचना' को पिता व माता के पास ले जाया गया । सुलोचना ने दोनो को हार्दिक नमस्कार गदगद होकर किया । माता सुप्रभा ने सुलोचना को छाती से लगा लिया । ज्यो ही सुलोचना मा की छाती से लगी त्योही दोनो का दिल उमड पडा । पुन वाद्य बज उठे । नृत्य वन्द हो गया और एक सके त्तिक नादेश पढकर सुनाया गया -- I " श्रागन्तुक प्रिय राजकुमारी एव सभासदो । आज जो आप यह आयोजन देख रहे है वह अपने श्रापमे सर्वप्रथम और न्यायकारी प्रायोजन है । अभी अपनी अनुभवी और विवेकशील - परिचायिका के साथ सुलोचना राजकुमारी जी अपने कोमल चरण श्रागे बढायेगी, परिचायिका प्रत्येक राजकुमार के पास से उसे राजकुमार का परिचय कराती हुई आगे बढाती रहेगी। जिसभी राजकुमार को राजकुमारी जी अपनी पसन्द की प्राथमिकता देकर जयमाला पहना देगी उसी राजकुमार के साथ -- घोषणा पत्र के अनुसार विवाह कर दिया जायेगा ।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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