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________________ ( १५७ ) प्रत्येक सुन्दर याभूषण श्राज उसके तन पर शोभित हो रह थे। वैसे ही वह सोदर्य की प्रतिमूर्ति थी— इस पर भी श्रृगारादि से सजाने पर तो इन्द्राणी को भी मात देने लगी । 'हाय हाय ! देखो किसके भाग्य खुलते है ?" 1 होय ' होय ' कौन भाग्य शाली राजकुमार होगा जिसे हमारी राज दुलारी पसन्द करेगी । ... देखते हैं किसकी सेज पर यह कोमल फूल अपनी सुरभित्त सुगन्धि बिखेरेगा ?" •" हाय । नजर न लग जाये --- हमारी सहेली को | देखेंगे किसके सीने पर यह अपना मस्तक जाकर टिकाएगी । ""क्या कहने। अन्दर ही अन्दर गुदगुदी दवाये जा रही है अरी । जरा बाहर भी टपकने दे | कुछ भी हो । पर भूल मत जाना हमको, पिया को सेज पाकर । हा भई, कही ऐसा न हो कि पिया के रंग मे रंग कर सखियो का रंग ही याद न आये | ... " सुन तो राजकुमारी देख ऐसा काम मत कर बैठना जिससे पियाजी नाराज हो जाय । • भरे हा ' कही पिया रूठ गये तो मजा किरा - किरा हो 1 जायेगा ।' एक बात भोर सुनले “स्वयम्वर मंडप मे धीरे-धीरे कदम उठाना | दृष्टि ऐसी डालना कि जिस पर भी पडे वह वह । और यो अनेक आनन्द, सोद, व्यग मादि से सनी हुई बातें सुलोचना को उसकी सहेलिया कह रही थी और सुलोचना अन्दर ही अन्दर सिमटी जा रहीं थी । · बाराणसी नगर की सभी महिलायें प्राज सजधजकर महाराज अकम्पन के रणवास पर एकत्रित हो रही थी । सब श्राज स्वर्ग को 1 •
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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