SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२८ ) छा रहे थे। सर्वोच्च नामाज्य सिंहासन पर भरत विराजे हुए थे। चमरवाहक, पवन सचारक, एव सुगन्यि प्रशारक, सेवक अपना अपना कार्य मुग्ध होकर कर रहे थे। याग भरत को चकवर्ती पद से विभूषित किया जा रहा था। अद इन्हे भरत नहीं, अपितु महाराजाधिराज चक्रवर्ती राज्य सम्पदाधिपति नन्त कहा जा रहा था। ____ अमरानो से नी सुन्दर रनगिया अपने गौर एव नरम पैरो में मवर कार को पागल यान्ये वेसुध हुई नृत्य कर रही थी। मगत जी मवुर तान ने नारा वातावरण नाच उठा था। चागे पर एक वसन्त की बहार छा गई थी। ___ अाज प्रति की प्रत्यक रचना अपनी-अपनी भाग में नीत सुना नही थी। पवन का मन्द मीठा नग, नदियो का हार, मद, वृष, ततालो की कमी डानियों की परसराती यान, विनि, उद्यान, पाटिका आदि में नरन र विगे पुणे मिली ली मस्तनमा चौर पृन्त्री पर मर मन का विधाना विहाए हम लोमन्न-वाल धान की शरिचालीमा कुन मिलाकर मोट प्रकट कर रहे थे। मान् उमा स्वर पाच नग्न के इर्द गिद, रोम रोम, में नमाया गया। चयी भग्न को भापति शी भला कौन गपन रानी माह सकता है? किसान बार तो जिनो जियपी। इनमे ने वनीन हजार तो आई , वत्तीय हजार दिया, जिनमो जान-यन पर देनी ने इन्सुन भी थी, एव चीन रजा न्यानो पर ने गुगमन न्याना की। म्हागज भरत के आसन प र बर निक नजारमा र नाम (राजा) मानन में
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy