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________________ और दोनो को ही राजा पद प्रदान किया है । अब भरत राजा से महाराजा बन गया है और हमे राजा भी नहीं रहने देना चाहता? __'जी · जी...' 'दूत महोदय । तुमने बहुत ही वढा चढाकर भरत की प्रशस करदी है। पर यह प्रशसा प्रशसा नहीं किन्तु अभिमान की गन्ध है। ""भरत ने छह खण्ड भू पर अधिकार कर लेने के पश्चात भी विश्राम नहीं किया ? "तृष्णा का लोभी भरत, मेरे छोटे से राज्य को भी हडपना चाहता है ? .."मेरा छोटा सा राज्य भी उसकी आखो मे खटकने लग गया है? "पिता द्वारा दी गई भूमि को भी छीनना चाह रहा है ?" 'नही । नही । ऐसी बात नहीं।' की वीच मे ही दूत बोल उठा। 'तो फिर क्या बात है?' 'भरत महाराज तो आपके बडे भ्राता है। आपने ज्यो ही उन्हे प्रणाम किया, वे श्राप पर अत्यन्त प्रसन्न होगे और आपको और भी भूमि प्रदान करदी जाएगी। ___'चुप रहो।' बाहुबली गरज उठे। वोले.. मैं तुम्हारे भरत महाराजा की तरह लोलुपी नहीं। लालची नहीं। तृष्णा का भिखारी नहीं । मुझे तो मेरी छोटी सी जागीर ही अच्छी है। मुझ से प्रणाम कराकर मेरा राज्य हड़पने वाले भरत से कहदेना कि बाहुबली को ना राज्य की भूख है और ना वह तृष्णा का भिसारी ।'
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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