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________________ १९-जब भाई से भाई भिड़ही पड़े "महाराज भरत दिग्विजय प्राप्त करके वापिस पधार रहे है ।" ऐसी प्रिय, उत्साहवर्धक, आनन्ददायक, और भगलकारक सूचना को सुनकर अयोध्या का कनकन नाच उठा । जिध्र देखो उधर ही बच्चे से लेकर वृद्ध तक के चेहरो पर प्रसन्नता की लाली छाई हुई है । प्रत्येक के हृदय मे एक नयी उमग की तरग उठ रही है । अयोध्या का द्वार-द्वार गली-गली कौना-कोना सजाया जा रहा है । स्थान-स्थान पर शहनाई स्वागत गान गा रही है । अयोध्या का मुख्य द्वार प्राज फूला नहीं समा रहा है । असस्य नर नारियो का समूह महाराज भरत के स्वागत को आतुर हो प्रतीक्षा मे खडा है । मधुर वाद्य बज रहे है । कानो कान सुनाई न पड़ने वाली अनेक चर्चानो का कोलाहाल मचा हुआ है । सबके चेहरे पर प्रसन्नता, उत्साह, प्रानन्द और नई उमग की हिलोरे अपनी मधुर मुस्कान की फुहारे बरसा रही है। तभी गगन मण्डल मे धूल के प्रसय्य करण उडते नजर 'पाये। फरणो मे सात रंग के पुप्प खिलते नजर आये । विजय-विगुल की श्रावाज सुनाई दी जाने लगी। विजय पताकाए लहराती हुई दृष्टि गत होने लगे। 'जय मरत' । 'जय भरत' का नारा सुनाई देने जगा।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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