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________________ (२४) २ जीवोंको मारकर अथवा मरे हुए जीवाका कलेवर खाना, मांस खाना कहलाता है । मांस खानेवाले हिंसक और निर्दयी कहलाते हैं। ३ शराव, भाग, चरस, गॉजा वगैरह नशीली चीजोका सेवन करना मदिरापान कहलाता है । इनके सेवन करनेवाले शरावी और नशेवाज कहलाते हैं। शरावियोंके धर्म कर्म और भल बुरेका कुछ भी विचार नहीं रहता । उनका ज्ञान विचार नष्ट हो जाता है । औरोकी तो क्या घरके लोग भी उनपर विश्वास नहीं करते । ४ जंगलके रीछ, वाघ, मृअर हिरण वगैरह स्वछंद फिरनेवाले जानवरोंको तथा उड़ते हुए छोटे छोटे पक्षियोको अथवा और किसी जीवको बन्दूक वगैरह हथियारोसे मारना शिकार खेलना कहलाता है । इस बुरे कामके करनेवालोके महान् पापका बंध होता है। इन पापियोंके हाथमे बन्दुक वगैरह देखते ही जंगलके जानवर भयभीत हो जाते हैं। _ ५ वेश्या ( वाजारकी औरत ) से रमनेकी इच्छा करना। उसके घर आना जाना, उससे अतिशय प्रीति रखना, वेश्याव्यसन कहलाता है। वेश्या व्यभिचारिनी स्त्री होती हैं। उससे सम्बन्ध रखनेसे ही मनुष्य व्यभिचारी हो जाता है । व्यभिचारसे बुरे काका बन्ध होता है, वेश्यागमनसे अनेक प्रकारके दुःसाध्य रोग भी हो जाते हैं, इसके सिवाय वेश्यासेवन करनेसे मा वहिन सेवन करनेका पाप भी लगता है, वसंततिलका
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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