SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २३ ) ७ क्या सब ही प्रतिमाओं पर चिन्ह होते हैं ? जिस प्रतिमापर चिन्ह न हो उसे तुम किसकी कहोगे ? ८ यदि प्रतिमाओं पर चिन्ह नहीं हों तो क्या कठिनाई होगी ? ९ यदि अजितनाथ भगवानकी प्रतिमापरसे हाथीका चिन्ह उठाकर गॅडेका चिन्ह बना दिया जावे, तो बनाओ उसे कौनसे भगवान की प्रतिमा कहोंगे ? १० सॉथियाका आकार लिखकर बताओ ?. चौथा पाठ | सप्त व्यसन । व्यसन उन्हे कहते हैं जो आत्माके स्वरूपको भुला देवें, तथा आत्माका कल्याण न होने देवें । किसी भी विषय में लवलीन होनेको व्यसन कहते हैं । यहाँ बुरे विषय में लवलीन होना । ही व्यसन है । व्यसन सेवन करनेवाले व्यसनी कहलाते हैं । और लोकमें बुरी दृष्टिसे देखे जाते हैं । व्यसन सात हैं – १ जुआ खेलना, २ मांस खाना, ३ मदिरापान करना, ४ शिकार खेलना, ५ वेश्यागमन करना, ६ चोरी करना, और ७ परस्त्री सेवन करना । १ रुपये पैसे और कोड़ियों वगैरहसे नक्की मूठ खेलना और हार जीतपर दृष्टि रखते हुए शर्त लगाकर कोई काम करना जुआ कहलाता है । जूआ खेलनेवाले जुआरी कहलाते हैं जैसे अफीम आदिके १-२-३ आदि अंकोपर सरत लगाना । जुआरी लोगों का हर जगह अपमान होता है । जातिके लोग उनकी निंदा करते हैं और राजा उन्हें दण्ड देता है । जूआ खेलनेवालेको अन्य समस्त व्यसनोमे जबरन फँसना पड़ता है ।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy