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________________ सावधानीसे धरना उठाना), ५ प्रतिष्ठापनसमिति ( साफ भूमि देखकर जिसमे जीव जन्तु न हो मल मूत्र करना)। शेष गुण । सपरस रसना नासिका, नयन श्रोत्रका रोध ॥ पटआवशि मंजन तजन, शयन भूमिका शोध । वस्त्रत्याग कचढंच अंरु, लघु भोजन इक बार। दॉतन मुखमे ना करे, ठाड़े लेहि अहार ॥ १ स्पर्श, २ रसना, ३ घ्राण, ४ चक्षु, ५ श्रोत्र, इन पाँच इंन्द्रियोंको वशमे करना, ६ समता, ७ बन्दना, ८ स्तुति, ९ प्रतिक्रमण, १० स्वाध्याय, ११ कायोत्सर्ग, १२ स्नानका त्याग करना, १३ स्वच्छ भूमिपर सोना, १४ वस्त्र त्याग करना, १५ बालोका उखाड़ना, १६ एक बार थोड़ा भोजन करना, १७ दन्तधावन अर्थात् दॉतोन न करना, १८ खड़े खड़े आहार, लेना, इस प्रकार सब मिलकर २८ मूलगुण सर्वसामान्य मुनियोके होते हैं । मुनिजन इनका पालन करते हैं। प्रश्नावली । १ परमेष्ठी किसे कहते हैं ? परमेष्ठी पॉच ही होते हैं या कुछ कमती बढती भी ? २ पच परमेष्ठीके कुल गुण कितने हैं ? मुनिके मूलगुण कितने हैं ? ३ जो जीव मोक्षमें हैं, उनके और कौन कौन गुण है ? १ स्पर्शन इद्रिय । २ ऑख । ३ कान । ४ छह आवश्यक । ५ शरीरको नहीं धोना । ६ और । ७ थोड़ा।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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