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________________ ( १९) १० विद्यानुवादपूर्व, ११ कल्याणवादपूर्व, १२ प्राणानुवादपूर्व, १३ क्रियाविशालपूर्व, १४ लोकबिन्दुपूर्व ये चौदह पूर्व हैं। सर्वसाधुके २८ मूलगुण । साधु उन्हें कहते हैं जिसमे नीचे लिखे हुए २८ मूलगुण हो, वे मुनि तपस्वी कहलाते हैं। उनके पास कुछ भी परिग्रह नहीं होता और न वे कोई आरम्भ करते हैं । वे सदा ज्ञान ध्यानमें लवलीन रहते हैं। पञ्च महाव्रत । हिंसा अनुत तसकरी, अब्रह्म परिगह पाय । मन वच तनतें त्यागवो, पंच महाव्रत थाय ॥ १ अहिंसा महाव्रत, २ सत्य महाव्रत, ३ अचौर्य महाव्रत, ४ ब्रह्मचर्य महाव्रत, ५ परिग्रहत्याग महाव्रत । पञ्च समिति । ईर्या भाषा एषणा, पुनि क्षेपण आदान । प्रतिष्ठापनाजुत क्रिया, पाँचौं समिति विधान ।। १ ईर्ष्यासमिति ( आलस्य रहित चार हाथ आगे जमीन देखकर चलना), २ भाषासमिति (हितकारी प्रामाणिक मीठे वचन बोलना), ३ एषणासमिति (दिनमें एक वार शुद्ध निर्दोष आहार लेना ), ४ आदाननिक्षेपणसमिति (अपन पासके शास्त्र, पीछी, कमंडलु आदिको भूमि देखकर १ हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन और परिग्रह इन पाँच पापार त्यागको अणुव्रत और सर्वदेश त्यागको महाव्रत कहते हैं । २० ४ मैथुन, कुशील। इन पाँच पापों एक देश
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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