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________________ (११) पसेव रहित शरीर, अर्थात् ऐसा शरीर जिसमे पसीना न आवे, ४ मल मूत्र रहित शरीर, ५ हितमितप्रियवचन बोलना, ६ अतुल्यबल, ७ दूधके समान सफेद खून, ८ शरीरमें एक हजार आठ लक्षण, ९ समचतुरस्र संस्थान और १० वज्रवृषभ नाराच संहनन, ये दश अतिशय अरहंत भगवानके जन्मसे ही होते हैं । अर्थात् अरहंत भगवानका शरीर जन्मसे ही बड़ा सुन्दर सुडौल होता है । उसमेंसे बड़ी अच्छी सुगंध आती है और उसमे न पसीना आता है, न मल मूत्र होता है । उनके शरीरमें अतुल्य बल होता है और उनका रक्त सफेद दूधके समान होता है । वे सबसे मीठे वचन बोलते हैं । उनके शरीरके हाड़ वगैरह वज्रके होते हैं और उनके शरीरमें १००८ लक्षण होते हैं। केवलज्ञानके दश अतिशय । योजन शत इकमे सुभिख, गगन-गमन मुख चार । नहिं अदया उपसर्ग नहिं, नाही कवलौहार ॥ सबविद्या-ईश्वरपनो, नाहिं वर्दै नख केश । अनिमिष दृग छायारहित, दशकेवलके वेश ॥ १ एकसौ योजनमें सुभिक्षता, अर्थात् जिस स्थानमे भगवान हों उससे चारो तरफ सौ सौ योजनमे सुकाल होना, २ आकाशमे गमन, ३ चारों ओर मुखोका दीखना, ४ अदयाका अभाव, ५ उपसर्गका न होना, ६ कवलाहार (ग्रासवाला) आहार न लेना, ७ समस्त विद्याओका स्वामीपना, ८ नख के. १ हाड़ वेष्टन और कीलोंका वज्रमय होना । २ आकाश । ३ ग्रासाहार । ४ बाल।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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