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________________ ८] बास्योम जैन धर्म । - - • • • • • • • • • • __ अति बनी पौरि पगारि परिखा, सुनन उपान मोहगे। नर नौरि सुन्दर चतुर मेख सु, देव जन मन मोहगे । तहां जनक गृह छ, माम प्रयमहि, रतन भाग वरपियो। पुनि रुचिकै बायिन जर्ननि सेवा, कहि मन विधि हरपियो ॥२॥ सुर कुंजरममै कुंजर, धनलं धुरन्धगे" । केहरि" केमर गोभित, नखशिख सुन्दरो ॥ कमला कलश न्हवन, दुइ दाम सुहावनी । रवि शशिमाडल मधुर मीन जुग पावनी॥ राबनि कनक घर्ट जुगम पूग्ण, कमलकलित सरोवगे। कल्लोल माला कुलितं मागर, सिंहपीट' मनोहरो॥ रमणीक अमर विमान फणपति, भवन भुवि छवि छाजये। रुचि रत्नराशि दिएन्त ढहन सु, तेजपुंज विराजये ॥ ३॥ ये सखि मोलेहें सुपने सूती सयनहीं। देखे मार्य मनोहर पश्चिम रयनहीं । उठि प्रभात पिय पूछियो अवधि प्रकाशियो। त्रिभुवनपति सुत होसी' फल तिहि भासियो । भासियो फल तिहि चिंति, दंपति, परम आनंदित भये । छह मास परि नव मास पुनि तह, रयनदिन सुखसो गये ॥ १-कोट दीवार २-खाई, ३-स्त्री, ४-पहिले ही, ५-रुचिकपर्वत पर रहनेवाली देवियां, ६-माता, ७-ऐरावत, हाथोके समान, ८-हाथी, ९-सफेद, १०-बेल, ११-सिंह. १२-गर्दन परके बालोंसे गोभायमान, १३-कलशोंसे स्नान करती हुई लक्ष्मी, १४-माला, १५-सूर्य, १६चन्द्रमण्डल, १७-महल', १८-घडा, 1९-कमल सहित, २०-लहरों महित, २१-सिंहासन, २२-देवोंका विमान, २३-धरणोन्द्रका भवन, २४-अग्नि, २५-सोलह, २६-माता, २७-पिछलो, २८-रातमें, २९-सबेरे, ३०५-पति, ३१-होगा, ३२-विचार करने, ३३-रात दिन ।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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